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Monday 31 October 2016

अनचाहे बालों का उपचार लेजऱ से

अनचाहे बालों का उपचार लेजऱ से


अनचाहे बाल महिलाओं की एक आम समस्या है। महिलाओं के चेहरे पर पुरुषों जैसे बाल आ जाने से बहुत ही दुखद स्थिति बन जाती है। आमतौर पर ठोड़ी और होंठ के ऊपर बाल आते हैं।

कारण

हारमोनल समस्याएं : महिलाओं में हारमोन की अनियमितता के कारण चेहरे पर बाल आने लग जाते हैं। शरीर में टेस्टोस्टेरॉन हारमोन के अधिक सक्रिय होने पर चेहरे, अपर लिप व ठोढ़ी पर बाल आने लगते हैं।
वंशानुगत : चेहरे पर बाल आना एक वंशानुगत समस्याएं हैं। परिवार में यदि माता को बाल आने की समस्या है तो यह समस्या उसकी बेटी को होने की आशंका भी रहती है।
अनियमित जीवनशैली : भोजन में प्रोटीन, विटामिन और फाइबर जैसे आवश्यक पोषक तत्वों की कमी से भी अनचाहे बाल विकसित होने लगते हैं।
पॉलिसिक्टिक ओवरी : पॉलिसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम में ओवेरी में छोटी-छोटी गठानें बन जाती हैं जिससे हारमोन की एक्टिविटी पर प्रभाव पड़ता है और चेहरे पर बालों का विकास होता है।
स्टेरॉइड्स : 5-6 महीने तक लगातार स्टेरॉइड्स लेने पर मेटाबोलिक तथा हारमोनल परिवर्तन आने लगते हैं।
रजोनिवृत्ति : इस समय हारमोन के स्तर में बदलाव आते हैं जिससे अनचाहे बाल विकसित होने की आशंका रहती है।
अनचाहे बालों को लेजर द्वारा स्थायी रूप से हटाया जा सकता है। लेजर से बालों को हमेशा के लिए जड़ से खत्म किया जाता है। इसमें लगभग 7 से 8 सिटिंग्स लगती हैं। शरीर के अनचाहे बालों को दूर करने के लिए यदि वैक्सिंग, शैविंग, ट्वीजिंग आदि तरीकों से त्रस्त हो चुके हों तो लेजर उपचार अच्छा विकल्प हो सकता है।

तैयारी

  • बालों से निजात पाने के लिए किया जाने वाला लेजर उपचार आम कॉस्मेटिक प्रक्रिया से भिन्न मेडिकल प्रोसिजर है जिसे विशेष प्रशिक्षण प्राप्त प्रोफेशनल द्वारा ही किया जा सकता है। इस प्रक्रिया को कराने से पहले सुनिश्चित कर लें कि चिकित्सक या टेक्नीशियन अपने काम में कुशल हों। लेजर उपचार का मन बना चुके हों तो प्लकिंग, वैक्सिंग और इलेक्ट्रोलिसिस जैसी प्रक्रियाओं को 6 हफ्तों पहले से बंद करने की सलाह दी जाती है।
  • लेजर को बालों की जड़ों पर केंद्रित किया जाता है, वैक्सिंग या प्लकिंग जैसी प्रक्रियाओं से बाल अस्थायी रूप से जड़ समेत निकल जाते हैं इसलिए लेजर उपचार के पहले कम से कम 6 हफ्तों तक यह नहीं कराना चाहिए।
  • लेजर उपचार के पहले और बाद में 6 हफ्तों तक धूप से भी बचना चाहिए। त्वचा पर धूप के असर से लेजर उपचार का प्रभाव कम हो सकता है और प्रोसिजर के बाद जटिलताओं की आशंका भी बढ़ जाती है।
  • प्रक्रिया शुरू करने से पहले लेजर उपकरण को बालों के रंग, मोटाई और स्थान के अनुसार एड्जस्ट किया जाता है, साथ ही त्वचा के रंग का ध्यान रखना भी जरूरी होता है।


दूर करें स्ट्रेच मार्क्‍स को


उम्र बढऩे के साथ हमारी त्वचा पर स्ट्रेच के माक्र्स आ जाते हैं। त्वचा की तीन मुख्य परत होती हंै, एपीडर्मिस, डर्मिस और हाइपोडर्मिस। स्ट्रेच माक्र्स  मुख्यत: त्वचा की मिडल परत डर्मिस पर होता है, ऐसा इसलिए होता है क्योंकि त्वचा की इस परत में उतनी लचक नहीं होती है, जिस कारण त्वचा पर दबाव पड़ता है और त्वचा में स्ट्रेच माक्र्स  हो जाते हैं। ये स्ट्रेच माक्र्स युवावस्था के दौरान और प्रेगनेंसी के दौरान होते हैं। इन स्ट्रेच माक्र्स को दूर करने के लिए या फिर कम करने के लिए आप कुछ घरेलू और प्राकृतिक उपाय अपना सकती हैं।
स्ट्रेच माक्र्स से छुटकारा पाने के लिए कैस्टर ऑइल भी बेहद कारगर माना जाता है। इसके लिए प्रभावित हिस्से पर कैस्टर ऑइल लगा कर इस हिस्से को प्लास्टिक बैग से लपेट लें। अब हॉट वॉटर बॉटल से करीब आधा घंटे सिकाई करें और हल्का रगड़ें।

जैतून का तेल

जैतून के तेल में प्राकृतिक रूप से एंटीऑक्सीडेंट की मात्रा ज्यादा होती है जो कि त्वचा की बहुत-सी समस्याओं का निदान कर सकती है।
क्या करें : गुनगुने शुद्ध जैतून के तेल को स्ट्रेच मार्क्स पर लगाएं और हल्की मालिश करें। इससे ब्लड सर्कुलेशन सही होता है और स्ट्रेच माक्र्स  हल्के होते हैं। जैतून के तेल को आधा घंटा या उससे ज्यादा देर के लिए त्वचा पर लगा रहने दें। इससे त्वचा तेल में मौजूद विटामिन ए, डी और ई को अच्छे से सोख लेती है।

नींबू का रस

स्ट्रेच माक्र्स को दूर करने का एक तरीका है नींबू का उपयोग। नींबू में प्राकृतिक तौर पर एसिड पाया जाता है जो कि स्ट्रेच माक्र्स  को कम करने, एक्ने को खत्म करने आदि स्किन प्रॉब्लम्स में लाभकारी होता है।
क्या करें : सर्कुलर मोशन में ताजे कटे नींबू के रस को स्ट्रेच माक्र्स  पर लगाइए। नींबू के रस को कम से कम
दस मिनट तक लगा रहने दें, उसके बाद उसे पानी से धोएं। इसके अलावा खीरे के रस और नींबू के रस की बराबर मात्रा को लें और स्ट्रेच माक्र्स  पर लगाएं।

आलू का जूस

आलू में ढेर सारे विटामिन्स और मिनरल्स पाए जाते हैं जो त्वचा की ग्रोथ को बढ़ाते हैं और उसका फिर से नवीनीकरण करते हैं।
क्या करें : मध्यम आकार के आलू को थोड़ा मोटा काट लें। उसके बाद आलू के टुकड़े को स्ट्रेच माक्र्स  पर लगाएं। कुछ मिनटों बाद उस जगह को गुनगुने पानी से धो लें।

शक्कर

व्हाइट शुगर स्ट्रेच माक्र्स  को दूर करने के लिए सबसे अच्छा माना जाता है। आप शुगर का इस्तेमाल करती हैं तो यह मृत त्वचा को हटाने का काम करता है।
क्या करें : बादाम तेल के साथ एक चम्मच शक्कर मिलाएं और उसमें कुछ बूंद नींबू के रस की डाल कर अच्छे से मिला लें। मिश्रण को स्ट्रेच माक्र्स  वाले हिस्सों पर लगाएं। नहाने से दस मिनट पहले रोजाना इसे लगाएं और हल्का सा रगड़ें। एक महीने लगातार ऐसा करने पर आप पाएंगी कि आपके स्टे्रच माक्र्स  हल्के पडऩे लगे हैं।

एलोवेरा

त्वचा की विभिन्न समस्याओं में एलोवेरा बहुत लाभकारी है। इसमें पाए जाने वाले तत्व हल्की जलन और स्ट्रेच माक्र्स  को भी दूर करने में कारगर हैं।
क्या करें : आप चाहें तो डायरेक्ट एलोवेरा के जूस को स्ट्रेच माक्र्स  पर लगा सकती हैं और कुछ मिनट के बाद गुनगुने पानी से उसे धो सकती हैं। दूसरा तरीका यह है कि आप एक-चौथाई कप एलोवेरा का जूस लें और विाटामिन ई का तेल (दस कैप्सूल) लें और विटामिन ए का तेल (पांच कैप्सूल) को एक साथ मिक्स करें। इस मिश्रण को त्वचा पर हल्के हाथों से लगाएं (या रगड़ें)। ऐसा रोजाना करें। कुछ दिनों में फर्क दिखने लगेगा।


पीएमएस- मासिक धर्म की खास समस्या


पीएमएस यानि प्री मेंस्ट्रूरेशन सिंड्रोम। यह समस्या लाखों महिलाओं को सताती है। हालांकि यह बहुत ही पुरानी समस्या है फिर भी इसे कभी बीमारी नहीं समझा गया। यह एक शारीरिक-मानसिक स्थिति है, जो महिलाओं में मासिक धर्म से आठ-दस दिन पहले हो जाती है और अलग-अलग महिलाओं में इसके लक्षण भिन्न-भिन्न होते हैं।
जो महिलाएं डिलीवरी, मिस कैरेज या एबॉर्शन के समय ज्यादा हार्मोनल बदलाव महसूस करती हैं, उन्हें पीएमएस होता है। जो महिलाएं गर्भ निरोधक गोलियां लेती हैं, उन्हें गोलियां छोड़ देने पर भी यह ज्यादा होने लगता है। यह तब तक रहता है, जब तक उनका हार्मोनल स्तर नॉर्मल नहीं हो जाता। आमतौर पर महिलाओं में 20 वर्ष की आयु के बाद ही इसकी शुरुआत होने लगती है।
इन दिनों महिलाएं बेहद चिड़चिड़ी हो जाती हैं अक्सर बच्चों को भी पीट देती हैं और इससे उनकी व्यक्तिगत जिंदगी और करियर पर भी प्रभाव पड़ सकता है। पीएमएस का असली कारण अभी तक पता नहीं चल पाया है। ऐसा माना जाता है कि ये हार्मोनल असंतुलन की वजह से होता है, परंतु इस संतुलन का सही कारण कोई नहीं जानता।
हर माह पीएमएस के संकेत मेंस्ट्रूरअल साइकल के उन्हीं दिनों में होते हैं। शरीर का फूलना, पानी इक_ा होना, ब्रेस्ट में सूजन, एक्ने, वजन बढऩा, सिर दर्द, पीठ दर्द, जोड़ों का दर्द और मसल्स का दर्द इन्हीं में शामिल है। इनके साथ-साथ मूडी होना, चिंता, डिप्रेशन, चिड़चिड़ापन, मीठा और नमकीन खाने की इच्छा, नींद न आना, जी घबराना आदि भी हो सकते हैं।
कई महिलाओं को रोना, परेशान होना, आत्महत्या, हत्या और लड़ाकू व्यवहार जैसे लक्षण भी होने लगते हैं। अगर ये लक्षण बहुत तीव्र हो जाएं तो डॉक्टर को दिखाना चाहिए।

क्या आपको सचमुच पीएमएस है-

यह जानने के लिए कि आपको पीएमएस है या नहीं, बेहतर होगा अगर आप एक डायरी रखें जिसमें दो-तीन महीनों तक होने वाले लक्षणों को नोट करें। यह डायरी आपको बताएगी कि आपके लक्षण आपके मासिक धर्म से जुड़े हुए हैं या नहीं। आपको पता चल जाएगा कि आप पीएमटी (प्री मेंस्ट्रूरअल  टेंशन) से पीडि़त तो नहीं।


पीरियड्स नहीं बनेंगे परेशानी


हर माह तय समय पर पीरियड्स न शुरू होना महिलाओं की एक आम समस्या है पर, कई बार इस आम परेशानी में किसी गंभीर बीमारी के संकेत भी छुपे होते हैं। अनियमित पीरियड्स का क्या है कारण और समाधान जानते हैं इसके बारे में-
मासिक धर्म या पीरियड्स हर माह हर युवती की जिंदगी में तीन से पांच दिन तक रहता है। दूसरे शब्दों में कहें तो, इस समय गर्भाशय से स्त्राव होता है। मासिक चक्र आपकी प्रजनन प्रणाली में परिवर्तन लाता है, जिससे महिलाएं प्रजनन के लिए तैयार होती हैं। इससे माह के 5-7 दिनों तक गर्भाशय की गर्भधारण की क्षमता बढ़ती है। यह क्षमता प्रत्येक महिला में अलग-अलग होती है और कुछ में यह महीने में केवल 2-3 दिनों की भी होती है। प्रजनन प्रणाली प्रत्येक महिला में 12-16 वर्ष की आयु से शुरू होकर मेनोपॉज तक चलती है।
अनियमित मासिक धर्म उस तरह के रक्तस्त्राव को कहते हैं जो किसी महिला में पिछले माह के चक्र से अलग होता है। ऐसे में माहवारी देर से या समय से काफी पहले शुरू हो जाती है और उस दौरान रक्तस्त्राव सामान्य या उससे कहीं अधिक होता है। स्वस्थ महिला के शरीर में एस्ट्रोजन, प्रोजेस्टेरोन और टेस्टोस्टेरोन जैसे तीन हार्मोन्स मौजूद होते हैं। कभी-कभार इन हार्मोन्स में गड़बड़ हो जाती है जिसके कारण मासिक धर्म प्रक्रिया में परिवर्तन आते दिखते हैं।

क्या है कारण

गर्भावस्था: किसी माह मासिक धर्म न आना गर्भ ठहरने का भी संकेत हो सकता है। गर्भावस्था के दौरान महिला के शरीर में अलग तरह के हॉर्मोन्स बनते हैं और इस दौरान मासिक धर्म रुक जाता है।
मेनोपॉज: यदि किसी महिला की आयु 50 के आसपास है तो ऐसे में अनियमित मासिक धर्म होना बहुत सामान्य बात है। हालांकि इस दौरान डॉक्टर की सलाह लेने में कोई हर्ज नहीं होना चाहिए।
यौवनारंभ: मासिक धर्म की शुरुआत में किसी युवती को यदि पहले दो वर्षों तक अनियमित मासिक धर्म की शिकायत रहती है तो यह बहुत सामान्य प्रक्रिया है, परंतु यदि यह हालत लंबी चले तो डॉक्टर से जरूर मशविरा करना चाहिए।
खानपान में गड़बड़ी: अनियमित खानपान, वजन घटना या सामान्य से अधिक बढ़ जाना भी मासिक धर्म में अनियमितता का कारण होते हैं। इसलिए उचित खानपान के साथ अपने वजन को सामान्य बनाए रखने के प्रयास करना चाहिए।
तनाव की अधिकता: तनाव से उपजने वाले हॉर्मोन्स का एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन पर सीधा असर पड़ता है और रक्तस्त्राव में अनियमितता आती है।
ज्यादा व्यायाम: अधिक व्यायाम से हॉर्मोनल संतुलन में बदलाव आता है। एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन आपकी मासिक धर्म प्रक्रिया को सामान्य रखते हैं और जरूरत से ज्यादा व्यायाम से एस्ट्रोजन की संख्या में वृद्घि होती है, जिस कारण पीरियड्स रुक जाते हैं।
बीमारी: महिलाएं एक माह या उससे अधिक समय तक बीमार रहती हैं तो ऐसे में उनके रक्तस्त्राव में अलग-अलग तब्दीलियां आ सकती हैं।
थायरॉइड डिसॉर्डर: थायरॉइड के कारण भी यदा-कदा असामान्य मासिक धर्म हो सकता है, इसके कारण समूचे पीरियड्स चक्र पर असर पड़ता है। ऐसे में खून की जांच करा लेना ठीक रहता है।

ऐसे दूर होगी परेशानी

  • डॉक्टर को अपनी हर समस्या के बारे में बताएं। संकोच न करें और फिर विस्तारपूर्वक सलाह लें।
  • डॉक्टर से खानपान से जुड़ी जानकारी लें। तली, डिब्बाबंद, चिप्स, केक, बिस्कुट और मीठे पेय आदि अधिक न लें। सही मासिक धर्म के लिए स्वस्थ भोजन का चयन बहुत जरूरी है।
  • सीमा में ही खाएं। पौष्टिक भोजन का ही सेवन करने का प्रयास करें। अनाज, मौसमी फल और सब्जियां, पिस्ता-बादाम, कम वसा वाले दूध से बने आहार भी रोज की खुराक में शामिल करें।
  • दिन की शुरुआत हमेशा 2-3 गिलास पानी पीकर करें और पूरे दिन में 8-10 गिलास पानी जरूर पिएं। पानी से शरीर के टॉक्सिंस निकल जाते हैं और इससे आप फिट रहती हैं।
  • वजन और कमर के आकार को नियंत्रित बनाए रखें। इसलिए नियमित रूप से व्यायाम करें, लेकिन स्वयं पर बहुत अधिक दबाव न डालें।
  • रागी, जई, हरी पत्ती वाली सब्जियों और स्किम्ड मिल्क उत्पादों का सेवन नियमित रूप से किया जाना चाहिए।


बांझपन का कारण केवल पीसीओएस नहीं


बांझपन मूलरूप से गर्भधारण करने में असमर्थता है, बांझपन महिला की उस अवस्था को भी कहते हैं, जिसमें वह पूरे समय तक गर्भधारण नहीं कर पाती है। बांझपन हमेशा महिला की ही समस्या नहीं होती है। पुरुष तथा महिला दोनों की समस्या हो सकती है। प्रतिदिन दवाखाने में ऐसे कई मरीज आते हैं, जिनकी शादी भी नहीं हुई रहती है और यदि उनकी सोनोग्राफी रिर्पोट में सिस्ट या फाईब्राईड्स आ जाते हैं तो उनके पालकों को यह डर सताने लगता है कि कहीं उन्हें आगे चलकर बांझपन तो नहीं हो जाएगा।
अनिमित माहवारी या सिस्ट बांझपन का कारण हो सकता है परन्तु जरूरी नहीं है कि सभी पीसीओएस पीडि़त नवयुवतियों को बांझपन का शिकार होना ही पड़े।
आयु का बांझपन से सीधा सम्बंध होता है। युवावस्था में शारीरिक ताकत, रोग प्रतिरोधक क्षमता, तथा हार्मोनल बदलाव चरम पर होते हैं, इसलिए इस पहलू पर विचार करना महत्वपूर्ण है। उम्र बढऩे के साथ हमारी जीवनशक्ति और स्थिरता कम होने लगती है, इसलिए समय रहते कारणों को जानकर समय पर उपचार कराना श्रेयस्कर होगा।
अध्ययनों से पता चला है कि देर रात तक जागना या कार्य करने से हार्मोनल बदलाव चरम पर होता है, जिसके कारण पीसीओएस अथवा बांझपन जैसी परिस्थितियां उत्पन्न हो सकती हैं। अत: पूरी नींद अवश्य लें तथा देर रात तक जागने से भी बचें। सबसे पहले यह जानना आवश्यक है कि माहवारी नियमित है या नहीं? ओव्यूलेशन बराबर है अथवा नहीं? शरीर का तापमान और प्रोजेस्टेरान लेवल की जांच कराने के साथ-साथ सोनोग्राफी कराने के उपरांत यदि स्ट्रक्चरल खराबी न मिले उस स्थिति में होम्योपैथिक दवाईयां काफी हद तक कारगर सिद्ध हो सकती है।
आज भी समाज में महिला बांझपन को उपेक्षित नजरिए से देखा जाता है। जबकि हमें हमारा नजरिया बदलना होगा और कारण जानकर, निवारण कर उचित उपचार करके सफलता भी पाई जा सकती है।

मॉडर्न लाइफ बीमारी की जड़


आज की तेजी से बदलती हुई जीवन शैली ने हमारे काम करने के ढंग को ही नहीं बदला है बल्कि इससे हमारी सेहत पर भ्ी बुरा असर पड़ा है। आज के युवा काम से उत्पन्न तनाव को दूर करने के लिए स्मोकिंग और जंक/फास्ट फूड, अल्कोहल का सहारा लेना शुरू कर देते हैं। इन सबसे उनकी हड्डियां व मांसपेशियां निरंतर कमजोर होती चली जाती हैं।

कम्प्यूटर

कम्प्यूटर पर लगातार टाइप करने, मोबाइल पर लगातार एसएमएस करने से 'रिपिटिटिव स्टून इंजरीÓ (आर.एस.आई.) नामक बीमारी आपकी की अंगुलियों व अंगूठे की मांसपेशियों को काफी कमजोर कर देती हैं जो बाद में हाथ, कलाई, बांहों, कंधों व गर्दन में दर्द के रूप में सामने आते हैं।
उपाय: कम्प्यूटर मेज और कुर्सी को हर एक घंटे बाद छोड़कर खड़े हो जाएं। शरीर को स्ट्रेच करें। पांच मिनट टहलें। सभी जोड़ों को हल्का झटका दें और फिर काम शुरू करें।

काउच पोटेटो लाइफ स्टाइल

इसका अर्थ है सोफे/कुर्सी पर बैठे टीवी कम्प्यूटर देखना या इंटरनेट सर्फिंग करना आदि। इससे जोड़ों में दर्द की समस्या बढ़ रही है। इस दौरान अधिकांश लोग कुछ-न-कुछ जंक फूड खाते रहते हैं जिससे उनका वजन भी लगातार बढ़ता रहता है। यह मांसपेशियों को कमजोर और जोड़ों की कार्टिलेज को क्षतिग्रस्त कर देता है जिससे ऑस्टियों आर्थराइटिस नामक बीमारी हो जाती है।

नाइट शिफ्ट

नाइट शिफ्ट में काम करने से शरीर का हार्मोनल संतुलन बिगड़ जाता है। शरीर पर सूर्य की रोशनी का एक्सपोजर न होने से शरीर में प्राकृतिक रूप से बनने वाले विटामिन डी की भारी कमी हो जाती है। यह कमर और जोड़ों के दर्द को जन्म देती है। 
उपाय: सुबह उगते सूर्य की किरणों को नंगे शरीर पर पडऩे दें और उस दौरान व्यायाम करें।

ऊची एड़ी के जूते-चप्पल

फैशनेबल ऊंची एड़ी के जूते चप्पल पहनने से पैर व टांग के सभी जोड़ों व मांसपेशियों पर अनावश्यक रूप से अवांछित तनाव पड़ता है जिससे एड़ी, घुटने और कमर दर्द का कारण बनते हैं।
उपाय : फ्लैट और सॉफ्ट सोल के जूते पहनें।

सिक्स पैक्स एब, जीरो फिगर

नई पीढ़ी के लोग आजकल सिक्स पैक्स एब और जीरो फिगर के लिए जिम में घंटों कठिन सतह की ट्रेड मिल पर दौड़ते रहते हैं। इससे टखनों व घुटनों के जोड़ों को कालांतर में नुकसान होता है।

धूम्रपान

इससे खून में विटामिन डी की कमी हो जाती है, जिससे अस्थि घनत्व निश्चित रूप से कम होता है। यह कूल्हे, कलाई या रीढ़ की हड्डी के फ्रैक्चर को जन्म देता है। महिलाओं में रजोनिवृत्ति (मीनोपॉज) समय से 4-5 वर्ष पहले हो जाती है, जिससे इस्ट्रोजन हार्मोन कम होकर ऑस्टियोपोरोसिस हो जाता है। मोटापे, हार्ट अटैक तथा थायरॉयड की संभावना कई गुना बढ़ जाती है। धूम्रपान से एड्रिनल ग्रंथि, पैराथॅयरायड ग्रंथि से निकलने वाले हार्मोन भी प्रभावित होते हैं जिससे शरीर शिथिल हो जाता है। धूम्रपान से शरीर में फ्री रेडिकल्स की मात्रा काफी बढ़ जाती है जिससे बूढ़ापे की सभी बीमारियां जवानी में ही आ जाती हैं।

जंक फूड/फास्ट फूड

शरीर में फ्री रेडिकल्स की मात्रा बढ़ाते हैं, जिससे जल्दी बुढ़ापा और बीमारियां आती हैं। अधिकतर जंक फूड/फास्ट फूड में प्रोटीन की बहुत कमी और चिकनाई तथा चीनी की अधिकता होती है जो जोड़ों की कार्टिलेज की मरम्मत के लिए काफी नुक्सानदेह है। फ्री रेडिकल्स की अधिकता से हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता काफी कम हो जाती है।


मां बनने की क्षमता में रुकावट पीसीओएस


अत्यधिक गतिशील जीवनशैली एवं पर्यावरण प्रदूषण की बढ़ती समस्या और खान-पान में संयम न रख पाने की वजह से किशोरियां 'पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम (पीसीओएस)Ó से ग्रसित हो जाती हैं। अगर समय पर इसका इलाज न कराया जाए तो यह बीमारी मां बनने की क्षमता से वंचित कर सकती है।
यद्यपि यह प्रजनन आयु में होने वाली एक आम समस्या मानी जाती रही है लेकिन पिछले एक दशक में छोटी उम्र की लड़कियां भी इस समस्या से अछूती नहीं रही हैं। एक अनुमान के मुताबिक, आजकल हर 10 में से एक लड़की पीसीओएस की समस्या से जूझ रही है। वास्तव में यह किशोर लड़कियों के बीच एक आम समस्या बन गई है। पीसीओएस मुख्यत: एक ओवेरियन सिंड्रोम है जो अंडाशय को प्रभावित करता है। सामान्य भाषा में पॉलीसिस्टिक ओवेरियन का मतलब अंडाशय के अंदर बहुत सारे छोटे अल्सर का पाया जाना है। उन्होंने कहा कि ज्यादा मात्रा में चीनी और अत्यधिक परिष्कृत कार्बोहाइड्रेट का सेवन करने वालों में, कम उम्र में ही पीसीओएस की संभावना बढ़ जाती है। ज्यादा मात्रा में चीनी और कार्बोहाइड्रेट इंसुलिन के स्तर को बढ़ा देता है, जो हार्मोन को प्रभावित करता है।
इसके प्रमुख लक्षणों में - वजन का बढऩा, गर्दन और अन्य क्षेत्रों पर धब्बे पडऩा, पीरियड में अनियमितता, अनचाहे बालों का आना और मुंहासे शामिल हैं। पीसीओएस से ग्रसित लड़कियों में, अंडाशय सामान्य से ज्यादा मात्रा में एण्ड्रोजन विकसित करता है, जो एग के विकास को प्रभावित करता है। इस समस्या का ठीक से इलाज न किया जाना, एक लड़की को मां बनने की क्षमता से वंचित कर सकता है। साथ ही यह प्रजनन आयु में परेशानियां भी पैदा करता है।

पीसीओएस से लडऩे के लिये खाएं ये खाघ पदार्थ

सही समय पर पीसीओएस का सही इलाज, गंभीर प्रभाव और जोखिम को कम करने में मदद करता है, स्वस्थ भोजन और नियमित व्यायाम के जरिये भी इस समस्या से पार पाया जा सकता है। इसके अलावा साल में एक बार मधुमेह अथवा ग्लूकोज चैलेंज टेस्ट अवश्य कराएं। साथ ही एक स्वस्थ जीवनशैली को बनाए रखने के लिए आप चिकित्सक या आहार विशेषज्ञ से भी परामर्श ले सकते हैं। 

खाघ पदार्थ जो लड़े पीसीओएस से


आज की महिलाओं में पीसीओएस यानी कि पोलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम की बीमारी बहुत तेजी से फैल रही है। यह एक प्रकार की सिस्ट होती है जो कि ओवरी में होती है। पहले यह समस्या 25 की उम्र के बाद महिलाओं में देखी जाती थी पर अब छोटी बच्चियां भी इसकी जकड़ में आने लग गई हैं। खराब डाइट, शारीरिक व्यायाम न करना, पौष्टिकता में कमी और कुछ खराब आदते हैं जैसे , स्मोकिंग या शराब पीना आदि इस बीमारी का कारण माना जाता है।
पीसीओएस तब होता है जब सेक्स हार्मोन में असंतुलन पैदा हो जाता है। हार्मोन में जऱा सा भी बदलाव मासिक धर्म चक्र पर तुरंत असर डालता है। इस कंडीशन की वजह से ओवरी में छोटा अल्सर(सिस्ट) बन जाता है। इस बीमारी को सही किया जा सकता है लेकिन तब जब लाइफस्टाइल सही हो और खान-पान उस लायक हो तब। अगर हार्मोन लेवल को बैलेंस कर लिया जाए तो पीसीओएस को दूर भगाया जा सकता है। महिलाओं तथा लड़कियों को इससे बचने के लिये नियमित एक्सरसाइज करनी चाहिये और ऐसे आहार खाने चाहिये जिसमें फैट कम हो। अगर आप पीसीओएस डाइट लेती हैं तो, इससे आप मधुमेह से बची रहेगी और आप आगे चल कर मां भी बन सकती हैं। आइये जानते हैं पीसीओएस डाइट के बारे में-

साल्मन मछली

इस मछली में ओमेगा 3 फैटी एसिड होता है जो कि ग्लाइसेमिक इंडेक्स में कम होता है। यह न केवल दिल के बल्कि महिलाओं में एंड्रोजन हार्मोन के लेवल को भी ठीक रखता है।

सलाद पत्ता

सब्जियां पौष्टिक होती हैं। इंसुलिन प्रतिरोध पीसीओएस का एक आम कारण होता है इसलिये अपने आहार में सलाद पत्ते को शामिल करें।

जौ

यह साबुत अनाज ग्लाइसेमिक इंडेक्स में कम होता है और लो जीआई इंसुलिन को बढने से रोकते हैं और पीसीओएस से लड़ते हैं।

दालचीनी

यह मसाला शरीर में इंसुलिन लेवल को बढने से रोकता है और मोटापा भी कम करता है।

ब्रॉक्ली

इस हरी सब्जी में विटामिन्स होते हैं, कम कैलोरी और कम जी आई भी होता है। इसे हर महिला को खानी चाहिये।

मशरूम

लो कैलोरी और लो जीआई मशरूम जरुर ट्राई करें

टूना

टूना मछली बहुत पौष्टिक होती है और उसमें बहुत सारा ओमेगा 3 फैटी एसिड और विटामिन पाया जाता है जो कि पीसीओएस से लड़ता है।

टमाटर

इसमें लाइकोपाइन होता है जो वेट कम करता है और बीमारी से भी बचाता है।

शकरकंद

अगर आपको मीठा खाने का मन करे तो आप इस कम जीआई वाले खाघ पदार्थ को खा सकती हैं।

अंडा

यह पौष्टिक होता है इसलिये इसे जब भी उबाल कर खाएं तो इसके पीले भाग को निकाल दें क्योंकि यह हार्ट के लिये खराब होता है। इसमें हाई कोलेस्ट्रॉल होता है।

दही

यह न केवल कैल्शियम से भरा होता है बल्कि यह महिलाओं में मूत्राशय पथ संक्रमण से लडऩे में भी मददगार होता है।

मेवा

बादाम में अच्छा फैट पाया जाता है जो कि दिल के लिये अच्छा होता है।

पालक

इसमें बहुत कम कैलोरी होती है और यह एक सूपर फूड के नाम से जाना जाता है। इसे खाइये और पीसीओएस को दूर भगाइये।

दूध

जो महिलाएं पीसीओएस से लड़ रही हैं उन्हें कैल्शियम की आवश्यकता होती है। यह अंडे को परिपक्वत करने में, अंडाशय को विकसित और हड्डियों को मजबूत करने में मदद करता है। रोजाना दो गिलास बिना फैट का दूध पियें।

मुलहठी

यह एक हर्बल उपचार है जिसे खाने से महिला के शरीर में पुरुष हार्मोन कम होने लगता है और पीसीओएस से सुरक्षा मिलती है।


लड़कियों में बढ़ती पीसीओएस की समस्या


आजकल लड़कियों में बड़ी ही छोटी उम्र से पीसीओएस यानि की पोलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम की समस्या देखने को मिल रही है। चिंता की बात यह है कि कई सालों पहले यह बीमारी केवल 30 के ऊपर की महिलाओं में ही आम होती थी, लेकिन आज इसका उल्टा ही देखने को मिल रहा है।
डॉक्ट्र्स के अनुसार यह गड़बडी पिछले 10-15 सालों में दोगुनी हो गई है। लड़कियों में बढ़ती पीसीओएस की समस्या क्या है पीसीओएस तब होता है जब सेक्स हार्मोन में असंतुलन पैदा हो जाता है। हार्मोन्स में जऱा सा भी बदलाव मासिक धर्म चक्र पर तुरंत असर डालता है। इस कंडीशन की वजह से ओवरी में छोटा अल्सर(सिस्ट) बन जाता है। अगर यह समस्या लगातार बनी रहती है तो न केवल ओवरी और प्रजनन क्षमता पर असर पड़ता है बल्कि यह आगे चल कर कैंसर का रुप भी ले लेती है। दरअसल महिलाओं और पुरुषों दोनों के शरीरों में ही प्रजनन संबंधी हार्मोन बनते हैं। एंड्रोजेंस हार्मोन पुरुषों के शरीर में भी बनते हैं, लेकिन पीसीओएस की समस्या से ग्रस्त महिलाओं के अंडाशय में हार्मोन सामान्य मात्रा से अधिक बनते हैं। यह स्थिति सचमुच में घातक साबित होती है। ये सिस्ट छोटी-छोटी थैलीनुमा रचनाएं होते हैं, जिनमें तरल पदार्थ भरा होता है। अंडाशय में ये सिस्ट एकत्र होते रहते हैं और इनका आकार भी धीरे-धीरे बढ़ता चला जाता है। यह स्थिति पॉलिसिस्टिक ओवेरियन सिन्ड्रोम कहलाती है। और यही समस्या ऐसी बन जाती है, जिसकी वजह से महिलाएं गर्भ धारण नहीं कर पाती हैं।

ये हैं लक्षण

चेहरे पर बाल उग आना, मुंहासे होना, पिगमेंटेशन, अनियमित रूप से माहवारी आना, यौन इच्छा में अचानक कमी आ जाना, गर्भधारण में मुश्किल होना, आदि कुछ ऐसे लक्षण हैं, जिन की ओर महिलाएं ध्यान नहीं देती हैं।

क्यों होता है छोटी उम्र में पीसीओएस

खराब डाइट- जंक फूड, जैसे पिज्जा और बर्गर शरीर को नुकसान पहुंचाते हैं। अत्यधिक तैलीय, मीठा व वसा युक्त भोजन न खाएं। मीठा भी सेहत के लिये खराब माना जाता है। इस बीमारी के पीछे डयबिटीज भी एक कारण हो सकता है। अपने खाने पीने में हरी-पत्तेदार सब्जियों को शामिल करें और जितना हो सके उतना फल खाएं।
मोटापा- मोटापा हर मर्ज में परेशानी का कारण बनता है। ज्यादा वसा युक्त भोजन, व्यायाम की कमी और जंक फूड का सेवन तेजी से वजन बढ़ाता है। अत्यधिक चर्बी से एस्ट्रोजन हार्मोन की मात्रा में बढ़ोतरी होती है, जो ओवरी में सिस्ट बनाने के लिए जिम्मेदार माना जाता है। इसलिए वजन घटाने से इस बीमारी को बहुत हद तक काबू में किया जा सकता है। जो महिलाएं बीमारी होने के बावजूद अपना वजन घटा लेती हैं, उनकी ओवरीज़ में वापस अंडे बनना शुरू हो जाते हैं।
लाइफस्टाइल- इन दिनों ज्यादा काम के चक्कर में तनाव और चिंता अधिक रहती है। इस चक्कर में लड़कियां अपने खाने-पीने का बिल्कुल भी ध्यान नहीं देती। साथ ही लेट नाइट पार्टी में ड्रिंक और स्मोकिंग उनकी लाइफस्टाइल बन जाती है, जो बाद में बड़ा ही नुक्सान पहुंचाती है। इसलिये अपनी दिनचर्या को सही कीजिये और स्वस्थ रहिये। पीसीओएस को सही किया जा सकता है। अगर हार्मोन को संतुलित कर लिया जाए तो यह अपने आप ही ठीक हो जाएगा। आजकल की लड़कियों को खेल में भाग लेना चाहिये और खूब सारा व्यायाम करना चाहिये। इसके अलावा अपने खाने-पीने का भी अच्छे से ख्याल रखना चाहिय तभी यह ठीक हो सकेगा।

अंडाशय विकार का शिकार अक्सर होती हैं किशोरियां


भारतीय किशोरियों में सुस्त जीवनशैली, बासी भोजन की आदतें और मोटापे के कारण पोलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) फैलने की संभावना बढ़ रही है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने बताया कि एक अनुमान के मुताबिक, 10 से 30 फीसदी किशोरियां इससे प्रभावित हो रही हैं। मोटापा और पीसीओएस का गहरा संबंध है, खासकर जब यह किशोरावस्था के समय होता है। पीसीओएस की घटना बढ़ रही है और जीवनशैली में परिवर्तन हो रहा है, पोषण और आहार इसमें बहुत अहम भूमिका अदा करते हैं। पीसीओएस मामलों में हार्मोनल असंतुलन प्रमुख रूप से 'दोषीÓ हैं। अन्य कारकों में उन्होंने मोटापे का अचानक बढ़ जाना और कुछ मामलों में आनुवांशिक स्थितियों को गिनाया।
पिछले एक दशक में तंगहाल जीवनशैली हार्मोनल बदलाव के लिए पहला कारण बन चुकी है, और इससे पीसीओएस की संभावना बढ़ जाती है। अगर हम शहरी भारत की ओर देखें तो हर साल यहां लगभग 15 फीसदी लड़कियां पीसीओएस का शिकार हो जाती हैं। पीसीओएस से अंडाशय में कई प्रकार के अल्सर गठित होते हैं और एंड्रोजन (पुरुष हार्मोन) का अत्यधिक उत्पादन होने लगता है। इससे शरीर और चेहरे पर बाल, मासिक धर्म में अनियमितताएं और मुंहासे बढऩे लगते हैं।
वजन बढऩा, गले के पीछे और शरीर के अन्य भागों में काले धब्बे, अनियमित मासिक धर्म, अनचाहे बाल बढऩा और मुंहासे पीसीओएस का कारण बन सकते हैं। हालांकि, हर उस व्यक्ति को पीसीओएस नहीं होता जिसमें यह सब लक्षण हों। तीव्रता के विभिन्न लक्षणों के साथ अलग-अलग लोगों में अलग-अलग लक्षण होते हैं। कुछ किशोरियों के लिए भविष्य में यह चुनौतीपूर्ण हो जाएगा जब वह मां बनने की योजना बनाएंगी। अगर पीसीओएस का इलाज नहीं किया गया तो इससे कैंसर के साथ-साथ कई गंभीर समस्याएं पैदा हो सकती हैं।
पीसीओएस की पहचान लक्षणों और संकेतों, अल्ट्रासाउंड और हार्मोन विश्लेषण द्वारा की जा सकती है। साथ ही उन्होंने कहा कि अगर कोई महिला गर्भ धारण नहीं करना चाहती है तो इसके लिए हार्मोन की कई तरह की गोलियां उपलब्ध हैं।


ल्यूकोरिया में योग


अधिकतर महिलाएं ल्यूकोरिया जैसे-श्वेतप्रदर, सफेद पानी जैसी बीमारियो से जुझती रहती हैं, लेकिन शर्म से किसी को बताती नहीं और इस बीमारी को पालती रहती हैं। यह रोग महिलाओं को काफी नुकसान पहुंचाता है। इस बीमारी से छुटकारा पाने के लिए पथ्य करने के साथ-साथ योगाभ्यास का नियमित अभ्यास रोगी को रोग से छुटकारा देने के साथ आकर्षक और सुन्दर भी बनाता है।

यौगिक क्रिया

प्राणायाम ओम प्राणायाम 21 बार, कपालभाति 5 मिनट, अणुलोम-विलोम 5 मिनट, भ्रामरी प्राणायाम 5 बार। 

आसन

वज्रासन, शशांकासन, भुजंगासन, अर्धशलमासन, धनुरासन, पश्चिमोत्तोनासन, कन्धरासन। 

बन्ध

मुलबन्ध का विशेषरूप से अभ्यास इस बीमारी में काफी लाभदायक होता है । 

मुद्रा

अश्विनी मुद्रा, सहजोली मुद्रा, विपरित करणी मुद्रा और क्रमवार से धीरे धीरे सूर्य नमस्कार का अभ्यास। 

अंतत

यथाशक्ति शारीरिक श्रम करें , दिन में सोना बंद करें, आसन, प्रणायाम और प्रात: खुली हवा में प्रत्येक दिन टहलने का दैनिक कार्यक्रम बनायें। क्रोध, चिन्ता, शोक, भय से दूर रहें। सदैव प्रफुल्लित रहें। 

अपथ्य

तेज मिर्च मसालेदार पदार्थ, तेल में तले पदार्थ, गुड़, खटाई, अरबी, बैगन, अधिक सहवास, रात में जागना, उत्तेजक साहित्य, चाय, काफी,अधिक टीवी, संगीत-मजाक से बचे। पथ्य का पालन करते हुए योगाभ्यास के नियमित अभ्यास से कुछ ही दिनों में रोग से तो छुटकारा मिलेगा ही साथ ही साथ आकर्षक और सुन्दर भी आप दिखेंगी।

आहार

सभी हरी शाक-सब्जियां, सूप, खिचड़ी, दलिया, चोकरयुक्त आंटे की रोटी, फल में केला, अंगूर , सेव, नारंगी, अनार, आवंला, पपीता, चीकू, मौसमी, पुराना शाली चावल, चावल का धोवन तथा मांड़, दूध, शक्कर, घी, मक्खन, छाछ, अरहर और मूंग की दाल, अंकुरित मूंग, मोठ आदि का समुचित प्रयोग करें। स्वच्छतापालन, ध्यान, सत्संग और स्वाध्याय का अभ्यास।


गंभीर समस्या श्वेत प्रदर




ल्यूकोरिया (श्वेत प्रदर) की बीमारी महिलाओं की आम समस्या है। संकोच में इसे न बताना कई गंभीर समस्याओं का कारण बन सकता है। थोड़ी सी सावधानी व उपचार के जरिए इसके घातक परिणामों से बचा जा सकता है। अन्यथा यह कैंसर का कारण बन सकती है। सामान्य तौर पर गर्भाशय में सूजन अथवा गर्भाशय के मुख में छाले होने से यह समस्या पैदा होती है। उपचार न कराने से पीडि़ता को कई तरह की मानसिक व शारीरिक समस्याओं का शिकार होना पड़ता है। इसलिए महिलाएं को श्वेत प्रदर की बीमारी को हल्के में नहीं लेना चाहिए।
स्त्री-योनि से असामान्य मात्रा में सफेद रंग का गाढा और बदबूदार पानी निकलता है और जिसके कारण स्त्रियां बहुत क्षीण तथा दुर्बल हो जाती है। महिलाओं में श्वेत प्रदर रोग आम बात है। ये गुप्तांगों से पानी जैसा बहने वाला स्त्राव होता है। यह खुद कोई रोग नहीं होता परंतु अन्य कई रोगों के कारण होता है। श्वेत प्रदर वास्तव में एक बीमारी नहीं है बल्कि किसी अन्य योनिगत या गर्भाशयगत व्याधि का लक्षण है; या सामान्यत: प्रजनन अंगों में सूजन का बोधक है।

कारण

  • अत्यधिक उपवास
  • उत्तेजक कल्पनाए
  • अश्लील वार्तालाप
  • सम्भोग में उल्टे आसनो का प्रयोग करना
  • सम्भोग काल में अत्यधिक घर्षण युक्त आघात
  • रोगग्रस्त पुरुष के साथ सहवास
  • सहवास के बाद योनि को स्वच्छ जल से न धोना व वैसे ही गन्दे बने रहना आदि इस रोग के प्रमुख कारण बनते हैं।
  • बार-बार गर्भपात कराना भी एक प्रमुख कारण है।
  • असामान्य योनिक स्राव से कैसे बचा जा सकता है?

योनि के स्राव से बचने के लिए

  • जननेन्द्रिय क्षेत्र को साफ और शुष्क रखना जरूरी है।
  • योनि को बहुत भिगोना नहीं चाहिए (जननेन्द्रिय पर पानी मारना) बहुत सी महिलाएं सोचती हैं कि माहवारी या सम्भोग के बाद योनि को भरपूर भिगोने से वे साफ महसूस करेंगी वस्तुत: इससे योनिक स्राव और भी बिगड़ जाता है क्योंकि उससे योनि पर छाये स्वस्थ बैक्टीरिया मर जाते हैं जो कि वस्तुत: उसे संक्रामक रोगों से बचाते हैं
  • दबाव से बचें।
  • यौन सम्बन्धों से लगने वाले रोगों से बचने और उन्हें फैलने से रोकने के लिए कंडोम का इस्तेमाल अवश्य करना चाहिए।
  • मधुमेह का रोग हो तो रक्त की शर्करा को नियंत्रण में रखाना चाहिए।

 

ल्यूकोरिया में आयुर्वेदिक इलाज

आंवला

आंवले को सुखाकर अच्छी तरह से पीसकर बारीक चूर्ण बनाकर रख लें, फिर इसी बने चूर्ण की 3 ग्राम मात्रा को लगभग 1 महीने तक रोज सुबह-शाम को पीने से स्त्रियों को होने वाला श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) नष्ट हो जाता है।

झरबेरी

झरबेरी के बेरों को सुखाकर रख लें। इसे बारीक चूर्ण बनाकर लगभग 3 से 4 ग्राम की मात्रा में चीनी (शक्कर) और शहद के साथ प्रतिदिन सुबह-शाम को प्रयोग करने से श्वेतप्रदर यानी ल्यूकोरिया का आना समाप्त हो जाता है।

नागकेशर

नागकेशर को 3 ग्राम की मात्रा में छाछ के साथ पीने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) की बीमारी से छुटकारा मिल जाता है।

केला

2 पके हुए केले को चीनी के साथ कुछ दिनों तक रोज खाने से स्त्रियों को होने वाला प्रदर (ल्यूकोरिया) में आराम मिलता है।

गुलाब

गुलाब के फूलों को छाया में अच्छी तरह से सुखा लें, फिर इसे बारीक पीसकर बने पाउडर को लगभग 3 से 5 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सुबह और शाम दूध के साथ लेने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) से छुटकारा मिलता है।

मुलहठी

मुलहठी को पीसकर चूर्ण बना लें, फिर इसी चूर्ण को 1 ग्राम की मात्रा में लेकर पानी के साथ सुबह-शाम पीने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) की बीमारी नष्ट हो जाती है।

बड़ी इलायची

बड़ी इलायची और माजूफल को बराबर मात्रा में लेकर अच्छी तरह पीसकर समान मात्रा में मिश्री को मिलाकर चूर्ण बना लें, फिर इसी चूर्ण को 2-2 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सुबह-शाम को लेने से स्त्रियों को होने वाले श्वेत प्रदर की बीमारी से छुटकारा मिलता है।

ककड़ी

ककड़ी के बीज, कमलककड़ी, जीरा और चीनी (शक्कर) को बराबर मात्रा में लेकर 2 ग्राम की मात्रा में रोजाना सेवन करने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) में लाभ होता है।

जीरा

जीरा और मिश्री को बराबर मात्रा में पीसकर चूर्ण बनाकर रख लें, फिर इस चूर्ण को चावल के धोवन के साथ प्रयोग करने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) में लाभ मिलता है।

चना

सेंके हुए चने पीसकर उसमें खांड मिलाकर खाएं। ऊपर से दूध में देशी घी मिलाकर पीयें, इससे श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) गिरना बंद हो जाता है।

जामुन

छाया में सुखाई जामुन की छाल का चूर्ण 1 चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार पानी के साथ कुछ दिन तक रोज खाने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) में लाभ होता है।

फिटकरी

चौथाई चम्मच पिसी हुई फिटकरी पानी से रोजाना 3 बार फंकी लेने से दोनों प्रकार के प्रदर रोग ठीक हो जाते हैं। फिटकरी पानी में मिलाकर योनि को गहराई तक सुबह-शाम धोएं और पिचकारी की सहायता से साफ करें। ककड़ी के बीजों का गर्भ 10 ग्राम और सफेद कमल की कलियां 10 ग्राम पीसकर उसमें जीरा और शक्कर मिलाकर 7 दिनों तक सेवन करने से स्त्रियों का श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) रोग मिटता है।

गाजर

गाजर, पालक, गोभी और चुकन्दर के रस को पीने से स्त्रियों के गर्भाशय की सूजन समाप्त हो जाती है और श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) रोग भी ठीक हो जाता है।

गूलर

रोजाना दिन में 3-4 बार गूलर के पके हुए फल 1-1 करके सेवन करने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) के रोग में लाभ मिलता है मासिक-धर्म में खून ज्यादा जाने में पांच पके हुए गूलरों पर चीनी डालकर रोजाना खाने से लाभ मिलता है। गूलर का रस 5 से 10 ग्राम मिश्री के साथ मिलाकर महिलाओं को नाभि के निचले हिस्से में पूरे पेट पर लेप करने से महिलाओं के श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) के रोग में आराम आता है। 1 किलो कच्चे गूलर लेकर इसके 3 भाग कर लें। एक भाग कच्चे गूलर उबाल लें। उनको पीसकर एक चम्मच सरसों के तेल में फ्राई कर लें तथा उसकी रोटी बना लें। रात को सोते समय रोटी को नाभि के ऊपर रखकर कपड़ा बांध लें। इस प्रकार शेष 2 भाग दो दिन तक और बांधने से श्वेत प्रदर (ल्यूकोरिया) में लाभ होता है।

नीम

नीम की छाल और बबूल की छाल को समान मात्रा में मोटा-मोटा कूटकर, इसके चौथाई भाग का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम को सेवन करने से श्वेतप्रदर में लाभ मिलता है। रक्तप्रदर (खूनी प्रदर) पर 10 ग्राम नीम की छाल के साथ समान मात्रा को पीसकर 2 चम्मच शहद को मिलाकर एक दिन में 3 बार खुराक के रूप में पिलायें।

बबूल

बबूल की 10 ग्राम छाल को 400 मिलीलीटर पानी में उबालें, जब यह 100 मिलीलीटर शेष बचे तो इस काढ़े को 2-2 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम पीने से और इस काढ़े में थोड़ी-सी फिटकरी मिलाकर योनि में पिचकारी देने से योनिमार्ग शुद्ध होकर निरोगी बनेगा और योनि सशक्त पेशियों वाली और तंग होगी। बबूल की 10 ग्राम छाल को लेकर उसे 100 मिलीलीटर पानी में रात भर भिगोकर उस पानी को उबालें, जब पानी आधा रह जाए तो उसे छानकर बोतल में भर लें। लघुशंका के बाद इस पानी से योनि को धोने से प्रदर दूर होता है एवं योनि टाईट हो जाती है।

मेथी

मेथी के चूर्ण के पानी में भीगे हुए कपड़े को योनि में रखने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) नष्ट होता है। रात को 4 चम्मच पिसी हुई दाना मेथी को सफेद और साफ भीगे हुए पतले कपड़े में बांधकर पोटली बनाकर अन्दर जननेन्द्रिय में रखकर सोयें। पोटली को साफ और मजबूत लम्बे धागे से बांधे जिससे वह योनि से बाहर निकाली जा सके। लगभग 4 घंटे बाद या जब भी किसी तरह का कष्ट हो, पोटली बाहर निकाल लें। इससे श्वेतप्रदर ठीक हो जाता है और आराम मिलता है। मेथी-पाक या मेथी-लड्डू खाने से श्वेतप्रदर से छुटकारा मिल जाता है, शरीर हष्ट-पुष्ट बना रहता है। इससे गर्भाशय की गन्दगी को बाहर निकलने में सहायता मिलती है। गर्भाशय कमजोर होने पर योनि से पानी की तरह पतला स्राव होता है। गुड़ व मेथी का चूर्ण 1-1 चम्मच मिलाकर कुछ दिनों तक खाने से प्रदर बंद हो जाता है।


यौवन काल में किशोरियों की उचित देखभाल


बाल्यावस्था की सादगी और भोलेपन की दहलीज पार करके जब किशोरियां यौवनावस्था में प्रवेश करती हैं, यही वय:संधि कहलाती है। इस दौर में परिवर्तनों का भूचाल आता है। शरीर में आकस्मिक आए परिवर्तन न केवल शारीरिक वृद्धि व नारीत्व की नींव रख़ते हैं, वरन मानसिक परिवर्तनों के साथ मन में अपनी पहचान व स्वतंत्रता को लेकर एक अंर्तद्वंद भी छेड देते हैं। इन परिवर्तनों से अनभिज्ञ कई लडकियां यह सोचकर परेशान हो उठती हैं कि वे किसी गंभीर बीमारी से त्रस्त तो नहीं है।
यौन काल की यह अवधि 11 से 16 वर्ष तक होती है। कद में वृद्धि, स्तनों व नितंबों का उभार, प्यूबर्टी, शरीर में कांति व चेहरे पर लुनाई में वृद्धि- ये बाहरी परिवर्तनों का कारण होता है। आंतरिक रूप में डिंब-ग्रंथि का सक्रिय होकर एस्ट्रोजन व प्रोजेस्ट्रॉन हॉर्मोन्स का रक्त में सक्रिय होना। इस दौरान जनन यंत्रों का विकास होता है व सबसे बडा लक्षित परिवर्तन होता है मासिक धर्म का प्रारंभ होना। इस दौरान प्रकृति नारी को मां बनने के लिए शारीरिक व मानसिक रूप से विकसित करती है।

रोमांच व आश्चर्य का मिश्रित भाव

शारीरिक बदलाव अकेले नहीं आते, इनसे जुडे अनेक प्रश्न व भावनाएं मन के अथाह सागर में हिलोरें लेने लगती हैं। रोमांच और आश्चर्य मिश्रित मुग्धभाव के साथ वह एक अनजाने भय और संकोच से भी घिर जाती है। कभी सुस्त तो कभी उत्साहित। कभी लज्जाशील-विनम्र तो कभी उद्दंड, गुस्सैल और चिड़चिड़ी। उसे कुछ समझ नहीं आता कि क्या और क्यों हो रहा है और शुरू होता है परिवार वालों के साथ अपनी पहचान और स्वतंत्रता का प्रतिद्वंद्व।

मासिक धर्म से उत्पन्न परिवर्तन

मासिक धर्म से संबंधित मासिक व भावनात्मक परिवर्तन सबसे कठिन होता  है। लडकी स्वयं को बंधनयुक्त व लडकों से हीन समझने लगती है। वह समाज के प्रति आक्रोशित हो उठती है। लडकियों के आगामी जीवन को सामान्य, सफल, आत्मविश्वासी, व्यवहारकुशल और तनावरहित बनाने के लिए अति आवश्यक है इस अवस्था को समझना, उन्हें शारीरिक परिवर्तनों व देखरेख से अवगत कराना, मानसिक व शारीरिक परिवर्तनों पर चर्चा करना और समय-समय पर उन्हें पोषक भोजन, व्यायाम, विश्राम, मनोरंजन आदि के प्रति जागरूक करना ताकि उनका विकास सही हो सके।

विशेष सावधानी की जरूरत

यदि वय:संधि 11-12 वर्ष से पूर्व आ जाए या 16-17 वर्ष से अधिक विलंबित हो जाए तो दोनों ही स्थितियों में यौन ग्रंथियों की गडबडिय़ों की उचित जांच व इलाज अति आवश्यक है। यदि लडकी अल्पायु में जवान होने लगे तो न केवल देखने वालों को अजीब लगता है वरन् लडकी स्वयं पर पडती निगाहों से घबराकर विचलित हो सकती है। कई बार शीघ्र कामेच्छा जागृत होकर नासमझी में अनुचित कदम उठा सकती है। ऐसे में न केवल उसे उचित शिक्षित कर सावधानियां बरतनी चाहिए बल्कि डॉक्टर की भी राय लेनी चाहिए कि डिंबकोषों की अधिक सक्रियता, कोई भीतरी खऱाबी या कोई ट्यूमर तो नहीं।

डॉक्टरी जांच की आवश्यकता

यदि वय:संधि 17 वर्ष से अधिक विलंबित हो तो भी डॉक्टरी परीक्षण अति आवश्यक है। कई बार वंशानुगत या जन्मजात किसी कमी के कारण मासिक धर्म नहीं होता। ऐसे में लापरवाही ठीक नहीं, क्योंकि लडकियां हीन भावना व उदासीनता का शिकार हो सकती है व हताश हो आत्महत्या जैसे दुष्कृत्य भी कर सकती है। समय पर इलाज से शारीरिक व मानसिक वृद्धि सुनिश्चित की जा सकती है।

मां का दायित्व

माताओं को चाहिए कि वे स्वयं लडकियों को भी उनके भीतर होने वाले परिवर्तनों के बारे में सही ज्ञान दें। पोषक भोजन, उचित व्यायाम, स्वास्थ्यवर्धक दिनचर्या व स्वच्छता के बारे में प्रेरित करें।

मासिक धर्म

प्रारंभ- अधिकांशत: 10 से 13 वर्ष की आयु में प्रथम मासिक आ जाता है, पर यदि 8 साल के पहले प्रारंभ हो जाए या 16 साल तक भी न हो तो अपने डॉक्टर से संपर्क करें।
चक्र- प्राय: 24 से 25 दिन का होता है, किंतु यदि अतिशीघ्र हो या 35 दिन से अधिक विलंब हो तो यह हारमोन की गडबडी का सूचक है।
रक्तस्राव- साधारणत: 4-5 दिन की अवधि में 50-80 मिली रक्त जाता है, किंतु यदि ज्यादा मात्रा व अवधि में खून जा रहा हो या गट्टे जाते हों तो खून की कमी होने का डर बना रहता है।
दर्द- मासिक में थोडा-बहुत दर्द होना स्वाभाविक है, पर यदि असहनीय दर्द हो तो डॉक्टरी परीक्षण आवश्यक है।
श्वेत प्रदर- माह के मध्य में जब अंडा फूटता है तो मासिक प्रारंभ होने के 1-2 दिन पूर्व जननांग से थूक समान स्राव होना स्वाभाविक है, पर गाढा दही समान व खुजलीयुक्त स्राव संक्रमण के कारण होता है।

कुछ सामान्य समस्याएं 

कद

किशोरियों का कद औसतन माता-पिता के कद पर आश्रित होता है। पौष्टिक आहार एवं उचित व्यायाम द्वारा इसे प्रभावित किया जा सकता है, अत्यधिक बौनापन व ऊंचा कद दोनों ही हारमोन की गडबडी के सूचक हैं।

स्तन व नितंब में उभार

आजकल गरिष्ठ व तेलयुक्त भोजन व जंक फूड्स के सेवन के कारण किशोरियों के कम उम्र में ही वक्ष विकसित होने लगते हैं और नितंब में उभार आ जाता है। स्तनों में थोडा बहुत दर्द, विशेषकर माहवारी के दौरान स्वाभाविक है। शारीरिक विकास में अनियमितता नजऱ आने पर स्त्रीरोग विशेषज्ञ को अवश्य दिखाएं।


कैंसर की चिकित्सा के लिए होम्योपैथी सुलभ चिकित्सा


चिकित्सा जगत में निरन्तर हो रहे प्रगति के सभी उजले दावों के बावजूद दुनिया में कैंसर के लगभग 60 प्रतिशत केसेस भारत में पाए जाते हैं। कैंसर सबसे भयानक रोगों में से एक है, कैंसर के रोग की परंपरागत औषधियों में निरंतर प्रगति के बावज़ूद इसे अभी तक अत्यधिक अस्वस्थता और मृत्यु के साथ जोडा़ जाता है। और कैंसर के उपचार से अनेक दुष्प्रभाव जुडे हुए हैं। कैंसर के मरीज़ कैंसर पेलिएशन, कैंसर उपचार से होनेवाले दुष्प्रभावों के उपचार के लिए, या शायद कैंसर के उपचार के लिए भी अक्सर परंपरागत उपचार के साथ-साथ होमियोपैथी चिकित्सा के लिए निरन्तर हमारे दवाखाने पर मरीज नियमित रूप से आते रहते हैं। 

दुष्प्रभावों को नियंत्रित करने के लिए होमियोपैथी चिकित्सा

रेडिएशन थैरेपी, कीमोथैरेपी और हॉर्मोन थैरेपी जैसे परंपरागत कैंसर के उपचार से अनेकों दुष्प्रभाव पैदा होते हैं। ये दुष्प्रभाव हैं - संक्रमण, उल्टी होना, जी मितलाना, मुंह में छाले होना, बालों का झडऩा, अवसाद (डिप्रेशन), और कमज़ोरी महसूस होना। होमियोपैथी उपचार से इन सभी लक्षणों और दुष्प्रभावों को नियंत्रण में लाया जा सकता है। रेडियोथेरिपी के दौरान अत्यधिक त्वचा शोध (डर्मटाइटिस) के लिए 'टॉपिकल केलेंडुलाÓ जैसा होमियोपैथी उपचार और कीमोथेरेपी-इंडुस्ड स्टोमेटाइटिस के उपचार में आर्सेनिक अलबम का प्रयोग असरकारक पाया जाता है।
होमियोपैथी उपचार सुरक्षित हैं और कुछ विश्वसनीय शोधों के अनुसार कैंसर और उसके दुष्प्रभावों के इलाज के लिए होमियोपैथी उपचार असरकारक हैं। यह उपचार आपको आराम दिलाने में मदद करता है और तनाव, अवसाद, बैचेनी का सामना करने में आपकी मदद करता है। यह अन्य लक्षणों और उल्टी, मुंह के छाले, बालों का झडऩा, अवसाद और कमज़ोरी जैसे दुष्प्रभावों को घटाता है। ये औषधियां दर्द को कम करती हैं, उत्साह बढा़ती हैं और तन्दुरस्ती का बोध कराती हैं, कैंसर के प्रसार को नियंत्रित करती हैं, और प्रतिरोधक क्षमता को बढाती हैं। कैंसर के रोग के लिए एलोपैथी उपचार के उपयोग के साथ-साथ होमियोपैथी चिकित्सा का भी एक पूरक चिकित्सा के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं। सिफऱ् होमियोपैथी दवाईयां या एलोपैथी उपचार के साथ साथ होमियोपैथी दवाईयां ब्रेन ट्यूमर, अनेक प्रकार के कैंसर जैसे के गाल, जीभ, भोजन नली, पाचक ग्रन्थि, मलाशय, अंडाशय, गर्भाशय; मूत्राशय, ब्रेस्ट और प्रोस्टेट ग्रंथि के कैन्सर के उपचार में उपयोगी पाई जा रही हैं।
 चूंकि होमियोपैथी उपचार चिकित्सा का एक संपूर्ण तंत्र है, यह तंत्र सिफऱ् अकेली बीमारी को ही नहीं, बल्कि व्यक्ति को एक संपूर्ण रूप में देखता है।  कैंसर के मरीज़ कैंसर पेलिएशन, कैंसर उपचार से होनेवाले दुष्प्रभावों के उपचार के लिए, या शायद कैंसर के उपचार के लिए भी अक्सर परंपरागत उपचार के साथ साथ होमियोपैथी चिकित्सा को भी जोडते हैं। यदि आप कैंसर के एक रोगी हैं, और कैंसर के लिए या एलोपैथी इलाज से होनेवाले दुष्प्रभावों के इलाज के लिए होमियोपैथी चिकित्सा का उपयोग करना चाहते हैं, तो कृपया अपने चिकित्सक को इस बात की जानकारी अवश्य दें। यदि आप कैंसर के लिए होमियोपैथी की दवाईयां ले रहे हैं, तो अपने ऐलोपैथिक चिकित्सक को अवश्य बता दें,।

डॉ. ए. के. द्विवेदी
बीएचएमएस, एमडी (होम्यो)
प्रोफेसर, एसकेआरपी गुजराती होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज, इंदौर
संचालक, एडवांस्ड होम्यो हेल्थ सेंटर एवं होम्योपैथिक मेडिकल रिसर्च प्रा. लि., इंदौर


माइग्रेन के दर्द से बचाता है ये आहार


आजकल लोगों में माइग्रेन की समस्या बढ़ती जा रही है जिसका मुख्य कारण जीवनशैली में आने वाला बदलाव है। लोगों की खान-पान व रहन सहन की आदतों में बहुत बदलाव आए हैं जो कि सेहत से जुड़ी समस्याओं को पैदा करते हैं। माइग्रेन एक मस्तिष्क विकार माना जाता है।
आमतौर पर लोग माइग्रेन की समस्या के दौरान अपने आहार पर ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं जो कि दर्द को और भी बढ़ा सकते हैं। माइग्रेन की समस्या होने पर ज्यादातर लोग दवाओं की मदद लेकर इससे निजात पाना चाहते हैं। लेकिन वे इस बात से अनजान होते हैं कि ये दवाएं स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। जानें माइग्रेन में किस तरह के आहार का सेवन करना चाहिए।
  • यूं तो हरी पत्तेदार सब्जियां सेहत के लिए काफी फायदेमंद मानी जाती है। लेकिन माइग्रेन के दौरान इनका सेवन जरूर करना चाहिए क्योंकि इनमें मैग्निशियम अधिक होता है जिससे माइग्रेन का दर्द जल्द ठीक हो जाता है। इसके अलावा साबुत अनाज, समुद्री जीव और गेहूं आदि में बहुत मैग्निशियम होता है।
  • माइग्रेन से बचने के लिए मछली का सेवन भी फायदेमंद होता है। इसमें ओमेगा 3 फैटी एसिड और विटामिन पाया जाता है जो कि माइग्रेन का दर्द से जल्द छुटकारा दिलाती है। अगर आप शाकाहारी हैं तो अलसी के बीज का सेवन कर सकते हैं। इसमें भी ओमेगा 3 फैटी एसिड और फाइबर पाया जाता है।
  • वसा रहित दूध या उससे बने प्रोडक्ट्स माइग्रेन को ठीक कर सकते हैं। इसमें विटामिन बी होता है जिसे राइबोफ्लेविन कहते हैं और यह कोशिका को ऊर्जा देती है। यदि सिर में कोशिका को ऊर्जा नहीं मिलेगी तो माइग्रेन दर्द होना शुरु हो जाएगा।
  • कैल्शियम व मैग्निशियम युक्त आहार को अगर साथ में लिया जाए तो इससे माइग्रेन की समस्या से छुटाकारा पाया जा सकता है।
  • ब्रोकली में मैग्निशियम पाया जाता है तो आप ब्रोकली को सब्जी या सूप आदि के साथ ले सकते हैं। ये खाने में अच्छी लगती है।
  • बाजरा में फाइबर, एंटीऑक्सीडेंट और मिनरल पाये जाते हैं। तो ऐसे में माइग्रेन का दर्द होने पर साबुत अनाज से बने भोजन का जरुर सेवन करें।
  • अदरक आयुर्वेद के अनुसार अदरक आपके सिर दर्द को ठीक कर सकता है। भोजन बनाते वक्त उसमें थोड़ा सा अदरक मिला दें और फिर खाएं।
  • खाने के साथ नियमित रुप से लहसुन की दो कलियों का सेवन जरूर करें। यह आपको माइग्रेन की समस्या से बचाता है।  
  • जिन चीजों में प्रोटीन की मात्रा ज्यादा होती है जैसे चिकन, मछली, बीन्स,मटर, दूध, चीज, नट्स और पीनट बटर आदि। इन चीजों में प्रोटीन के साथ विटामिन बी6 भी पाया जाता है।
  • माइग्रेन के दौरान कॉफी या चाय की जगह हर्बल टी पीना काफी लाभकारी है। इसमें मौजूद नैचुरल तत्व जैसे अदरक, तुलसी, कैमोमाइल और पुदीना चिंता से निजात दिलाने और मांसपेशियों को तनावरहित करने में कारगर है।

बनाएं लाइफ को स्वर्ग


1. सही रास्ता चुनें

हम तभी कुछ हासिल करते हैं, जब एक टारगेट बनाकर उसी ओर चलते रहते हैं। ऐसा करने से हमें सक्सेस मिलती है, लोग हमारी तारीफ करते हैं। हमारी कामयाबी का गुणगान भी करते हैं। हमें भी खुशी मिलती है, लेकिन यह तभी संभव है, जब हम सही रास्ते पर चलें। इस बात का ध्यान रखें कि गलत रास्ते पर चलकर कभी सक्सेस नहीं मिल सकती। करियर बनाने के लिए हमें बस एक ही राह पर चलना चाहिए। बस, उसी राह को पकडकर आप भी आगे बढते रहें।

2. जरूरी हैं एटिकेट्स

बहुत से लोग कहते हैं कि जो व्यक्ति अच्छा इंसान नहीं बन सका, वह भला रेस्पेक्ट कैसे हासिल कर सकता है। आप अच्छे इंसान बनेंगे, अच्छे-बुरे का ध्यान रखेंगे, तभी लोग आपकी अच्छाइयों को देखकर आपकी तारीफ करेंगे। अगर आप किसी से सम्मानजनक भाषा में बात नहीं करेंगे, समझदारी नहीं दिखाएंगे, तो सक्सेस भी आपके पास नहीं आएगी। आपको न तो सोशल माना जाएगा और न ही किसी खुशी में आपको शरीक होने दिया जाएगा। इन बातों से भी जुडी हुई है आपकी सक्सेस। अगर आप मार्क्स लाने में परफेक्ट हैं, लेकिन बिहेवियर ठीक नहीं है, तब भी आपकी राह में बैरियर आएंगे। इसी आधार पर चयन करने वाले सीनियर्स आपको रिजेक्ट कर सकते हैं। अगर आपने स्माइल के साथ सही आंसर दिया, तो सक्सेस श्योर है।

3. लीक से हटकर

काम तो सभी करते हैं, लेकिन हमें ऐसा कुछ करना है, जिसे देख कर दुनिया कहे- वाह, यह तो कमाल हो गया। तभी आपकी ओर लोगों का ध्यान खिंचेगा। दुनिया में आप जाने जाएंगे और इसी के साथ आपके घर तक कामयाबी आ जाएगी। सामान्य कामों में वक्त जाया करना अच्छी बात नहीं है। अगर खुद को अलग दिखाना है, तो आपको अलग करना ही होगा और इसके लिए जरूरी है, अच्छी सोच के साथ प्रॉपर तैयारी। एक्टिंग की दुनिया में बलराज साहनी, ओमपुरी, नसीर जी, दिलीप कुमार, अशोक कुमार अमिताभ बच्चन का ही नाम क्यों लिया जाता है इसीलिए न कि उन्होंने अपने काम को उस बखूबी के साथ अंजाम दिया, जो बाकी लोगों के बस की बात नहीं थी।

4. राइट डिसीजन

कोई भी काम शुरू करने से पहले उसके बारे में सोचें जरूर। सबसे पहले यह डिसाइड करें कि वर्क शुरू कैसे करना है अगर हम सही डिसीजन लेंगे, तो क्वॉलिटी वर्क भी होगा और काम में अडचन भी नहीं आएगी। मुश्किल वक्त में लिया गया हमारा डिसीजन और कॉन्फिडेंस ही हमें सक्सेस दिलाता है। हमारी लाइफ में हर टाइम कोई न कोई मुसीबत आती है, लेकिन हम सही डिसीजन लेकर उससे आसानी से निपट सकते हैं।

5. सच के साथ रहें

अगर आप झूठ का सहारा लेते हैं, तो बहुत बडी गलती कर रहे हैं। कई बार ऐसा होता है कि बच्चे करते कुछ हैं और घर में बताते कुछ और हैं। इससे दूसरे का नुकसान नहीं होता। आपकी जिंदगी का गोल्डन पीरियड होता है जब आप युवा होते हैं। यंग एज में लिया गया आपका एक सही डिसीजन आपकी जिंदगी को स्वर्ग बना सकता है और अगर डिसीजन गलत लिया है तो नर्क। इसलिए हमेशा सच की राह पर ही चलें।


थकान भरी त्वचा को ऐसे दीजिये राहत


एक लंबे और थकान भरे दिन के बाद चेहरा बिल्कुल मुर्झाया हुआ सा दिखाई देने लगता है। ऐसा लगता है कि मानों चेहरे से सारी रौनक ही गायब हो गई हो। यही नहीं अगर आप ठीक से अपनी नींद पूरी नहीं करती तो भी चेहरा थका हुआ सा लगता है। चेहरे की थकान कई त्वचा संबन्धी समस्याएं पैदा करती है। जैसे, झुर्रियां, आंखों के नीचे डार्क सर्कल, झाइयां और काले धब्बे आदि।
चेहरे की थकान दूर करने के लिये आपको ऐसे कई छोटे उपाय करने होंगे जिससे आप का चेहरा खिल उठे। चेहरे की थकान मिटाने के लिये आपको फेस पैक बनाने होंगे जिसमें रोजवॉटर, दही, दूध और हल्दी पाउडर मिला होना चाहिये। यह एक हाइड्रेटिंग फेस मास्क हेाता है जो कि आपके चेहरे को फिर से जीवित कर देगा। इस फेस पैक को लगाने से चेहरा टाइट बन जाएगा और त्वचा गोरी और चमकदार बन जाती है। इन सब से भी ज्यादा जो सबसे खास बात है वह यह कि आपको रात की नींद अच्छे से लेनी चाहिये। आइये जानते हैं थकान भरी त्वचा के लिये और क्या क्या करना उचित रहता है।

स्क्रब करें

चेहरे को स्क्रब करना जरुरी है। इससे डेड स्किन निकल जाती है और चेहरा ग्लो करने लगता है।

कुकुंबर स्लाइस लगाएं

अगर आंखों में थकान भरी हो और आंखें सूजी हुई हों तो, खीरे या आलू की स्लाइस कर के आंखों पर रखें।

हाइड्रेटिंग क्रीम लगाएं

थके चेहरे को चमकदार बनाने का यह सबसे अच्छा तरीका है। इसे रात को लगाएं और सुबह ग्लोइंग चेहरा पाएं। क्रीम चेहरे में नमी भरती है।

फेस मास्क

घर पर ही दही, दूध , हल्दी, रोज वॉटर और नींबू का रस मिला कर पेस्ट बनाइये। इसे चेहरे पर फेस मास्क बना कर लगाएं और 15 मिनट में चमकदार त्वचा पाएं।

गुलाब जल

कॉटन बॉल्स को गुलाब जल में डुबाइये और थकी हुई त्वचा को पोंछिये। इससे त्वचा फ्रेश औ चमकदार बन जाएगी।

नमक का सेवन कम करें

ज्यादा नमक का सेवन आपकी स्किन को डीहाइड्रेट बना सकता है। इससे त्वचा हमेशा सूजी हुई और थकी हुई लगेगी।

खूब पानी पियें

अगर चमकदार, फ्रेश और थकान से राहत वाली त्वचा चाहिये तो खूब पानी का सेवन करें।