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Monday 31 October 2016

एक संपूर्ण अभियान जो रखे पूरे परिवार का ध्‍यान तीन आसन जो घटाए पेट की चर्बी

तीन आसन जो घटाए पेट की चर्बी


अगर आप अपने पेट की बढ़ती चर्बी से परेशान हैं और इसे कम करने के लिए किसी कारगर उपाय की तलाश में हैं तो योगासन आपके लिए बहुत मददगार हो सकते हैं। योगासनों न सिर्फ आपको पेट से फैट्स कम करने में मदद मिलेगी बल्कि आपकी मांसपेशियां मजबूत होंगी और शरीर लचीला होगा। आइए जानें ऐसे तीन आसनों के बारे में जिनसे आपको पेट की चर्बी कम करने में आसानी होगी।

भुजंगासन

इस आसन से न सिर्फ पेट की चर्बी कम होती है बल्कि बाजुओं, कमर और पेट की मांसपेशियों को मजबूती मिलती है और शरीर लचीला बनता है। इसकी विधि इसप्रकार है -
  • पहले पेट के बल सीधा लेट जाएं और दोनों हाथों को माथे के नीचे टिकाएं।
  • दोनों पैरों के पंजों को साथ रखें।
  • अब माथे को सामने की ओर उठाएं और दोनों बाजुओं को कंधों के समानांतर रखें जिससे शरीर का भार बाजुओं पर पड़े।
  • अब शरीर के अग्रभाग को बाजुओं के सहारे उठाएं।
  • शरीर को स्ट्रेच करें और लंबी सांस लें।
  • कुछ सेकंड इसी अवस्था में रहने के बाद वापस पेट के बल लेट जाएं।

पश्चिमोत्तानासन

पश्चिमोत्तानासन पेट बी चर्बी कम करने के लिए बेहद आसान और प्रभावी आसन है। इसकी आसान विधि इसप्रकार है-
  • सबसे पहले सीधा बैठ जाएं और दोनों पैरों को सामने की ओर सटाकर सीधा फैलाएं।
  • दोनों हाथों को ऊपर की ओर उठाएं और कमर को बिल्कुल सीधा रखें।
  • फिर झुककर दोनों हाथों से पैरों के दोनों अंगूठे पकडऩे की कोशिश करें। ध्यान रहे इस दौरान आपके घुटने न मुड़ें और न ही आपके पैर जमीन से ऊपर उठें।
  • कुछ सेकंड इस अवस्था में रहने के बाद वापस सामान्य अवस्था में आ जाएं।

बलासन

बलासन उन लोगों के लिए परफेक्ट आसन है जिन्होंने योगासन की शुरुआत की हो। इससे पेट की चर्बी भी कम होती है और मांसपेशियां मजबूत होती हैं। गर्भवती महिलाएं या घुटने के रोग से पीडि़त लोग इसे न करें। इसकी विधि इसप्रकार है -
  • घुटने के बल जमीन पर बैठ जाएं जिससे शरीर का सारा भाग एडिय़ों पर हो।
  • गहरी सांस लेते हुए आगे की ओर झुकें।
  • आपका सीना जांघों से छूना चाहिए और माथे से फर्श छूने की कोशिश करें।
  • कुछ सेकंड इस अवस्था में रहने के बाद सांस छोड़ते हुए वापस उसी अवस्था में आ जाएं।

घर पर बनाएं प्राकृतिक टूथपावडर


हमारे दिन प्रतिदिन के उत्पादों में पाए जाने वाले रसायनों तथा शरीर पर उनके होने वाले प्रभावों के बारे में जागरूकता आने के कारण हम में से बहुत से लोग ऐसे उत्पादों का इस्तेमाल करना चाहते हैं जो प्राकृतिक हों तथा रसायनों को हमारे घरों से जितना संभव हो दूर रखना चाहते हैं। चाहे वे घर में बने लोशन, शैंपू या टूथपेस्ट ही क्यों न हो। यह एक चमत्कारी पदार्थ होता है जो पानी के संपर्क में आने पर किसी भी प्रकार के विषाक्त पदार्थ, भारी धातुओं, अशुद्धियों या दूषित पदार्थों को अवशोषित कर लेता है।
टूथपेस्ट के लिए असरदार और सस्ते प्राकृतिक विकल्प

बेकिंग सोडा

यह थोडा खुरदुरा होता है तथा दांतों पर जमे हुए किसी भी पदार्थ को हटाने में सहायक होता है। दांतों पर सोड़ा घिसने से दांतों पर जमा हुआ प्लाक और दाग धब्बे निकल जाते हैं।

दालचीनी

यह मुंह में ताज़ी खुशबु भर देती है। यह एंटीबैक्टीरियल भी है अर्थात यह मुंह में बैक्टीरिया नहीं बनने देती अत: मुंह से आने वाली दुर्गन्ध को रोकती है।

लौंग

बहुत पहले से लौंग का उपयोग दांतों और मसूड़ों की समस्या में किया जाता है। यह दांत गिरने के कारण होने वाले दर्द से आराम दिलाने में सहायक होती है।

मिंट

क्या हमें बताने की आवश्यकता है, नि:संदेह ताज़ा सांस के लिए! इसमें एंटीबैक्टीरियल गुण होता है जो आपके दांतों और मुंह को जगमगाता हुआ रखता है।

घर पर टूथपावडर बनाने की विधि

3 टेबलस्पून बेंटोनाइट मिट्टी 2 टेबलस्पून बेकिंग सोड़ा 1 टेबलस्पून पुदीने की सूखी पत्तियों का चूर्ण ½ टेबलस्पून दालचीनी पावडर ½ टेबलस्पून लौंग पावडर आप पुदीना, दालचीनी और लौंग के स्थान पर उनके तेलों का उपयोग भी कर सकते हैं। परन्तु इससे आपके टूथपावडर को कोई द्रव्यमान नहीं मिलेगा। इसके अलावा लौंग और दालचीनी का पावडर मिलाकर पावडर के खुरदुरेपन को बढ़ाते हैं। अत: अच्छा होगा कि इनका पावडर के रूप में उपयोग करें। सभी घटकों को एक कटोरी में मिलाएं तथा कांच के एक मर्तबान में भर लें। धातु के बर्तन का उपयोग न करें।

टूथपावडर का उपयोग कैसे करें

इसका उपयोग दो तरीकों से किया जा सकता है। या तो परिवार के प्रत्येक सदस्य के लिए अलग मर्तबान रखें ताकि वे अपना टूथब्रश उसमें डुबा सकें। या मर्तबान में प्लास्टिक का एक चम्मच रखें तथा लगभग एक चौथाई टी स्पून पावडर लेकर उसे गीले ब्रश पर छिडकें तथा फिर ब्रश करें।

रोग और योग


योग में सेहत का मतलब न तो तन से होता है और न मन से, इसमें सेहत का मतलब सिर्फ ऊर्जा के काम करने के तरीके से होता है। अगर आपका ऊर्जा-शरीर उचित संतुलन और पूर्ण प्रवाह में है, तो आपका स्थूल शरीर और मानसिक शरीर पूरी तरह से स्वस्थ होंगे। इसमें कोई शक नहीं है। ऊर्जा-शरीर को पूर्ण प्रवाह में रखने के लिए किसी तरह की हीलिंग की जरूरत नहीं होती। यह तो अपने मौलिक ऊर्जा-तंत्र में जाकर उसे उचित तरीके से सक्रिय करना है।

मोटापा

अगर आप नियमित तौर पर योग करते हैं तो आपका अधिक वजन जरूर कम हो जाएगा। योग सिर्फ  एक व्यायाम के तौर पर ही काम नहीं करता, बल्कि आपकी पूरी शारीरिक प्रणाली को फिर से जवान बनाता है, साथ ही आपके भीतर ऐसी जागरूकता भी पैदा करता है कि आप खुद ही ज्यादा खाने से बचने लगते हैं। एक बार आपके शरीर में एक खास स्तर की जागरूकता आ जाती है तो उसके बाद आपका शरीर ऐसा बन जाता है कि यह सिर्फ  उतना ही भोजन ग्रहण करता है, जितना इसके लिए जरूरी होता है। जरूरत से ज्यादा भोजन यह कभी नहीं लेगा। ऐसा इसलिए नहीं होता कि आपके शरीर को एक खास तरह से कोई नियमित या नियंत्रित कर रहा है या फिर आपसे कोई डाइटिंग करने के लिए कह रहा है। आपको तो बस योगाभ्यास करना होता है। बाकी काम यह खुद करता है। यह आपकी प्रणाली को इस तरह से तैयार करता है कि वह आपको जरूरत से ज्यादा खाने ही नहीं देती। अगर आप किसी और तरह के व्यायाम या डायटिंग आदि का सहारा लेते हैं तो उसमें आपको खाने को लेकर लगातार अपने आप पर नियंत्रण की कोशिश करनी पड़ती है। योग की मदद से वजन कम करने में सबसे बड़ा फर्क इसी चीज का है।

मधुमेह

अगर आपका ऊर्जा शरीर पूर्ण रूप से कंपायमान है और उसका संतुलन सही है तो शरीर में कोई रोग होगा ही नहीं। योग में मधुमेह को एक गड़बड़ी के तौर पर देखा जाता है। इस रोग को हल्के में नहीं लिया जा सकता। दरअसल, जब हमारे शरीर की मूल संरचना में ही कुछ गड़बड़ होनी आरंभ हो जाती है तो मधुमेह होता है।
सूर्य नमस्कार से शरीर के भीतर इतनी ऊर्जा पैदा होती है कि इसका निरंतर अभ्यास करने वालों को बाहर की सर्दी प्रभावित नहीं कर पाती।
यह हर शख्स में अलग होता है। अगर दस लोगों को मधुमेह है तो उन सभी में शरीर के अंदर होने वाली गड़बड़ी का स्तर और प्रकार दोनों अलग-अलग होंगे। यही वजह है कि मधुमेह से पीडि़त हर शख्स को व्यक्तिगत तौर पर देखे जाने की जरूरत है।
योग का काम आमतौर पर प्राणमय कोष के स्तर पर होता है। आप प्राणमय कोष से शुरुआत करते हैं। प्राणायाम के माध्यम से आप जो भी करते हैं, वह प्राणमय कोष का व्यायाम ही है। यह व्यायाम इस तरीके से किया जाता है कि प्राणमय कोष पूरी तरह दुरुस्त हो जाए। अगर आपका प्राणमय कोष सही तरीके से संतुलित है और ठीक काम कर रहा है तो आपके शरीर में कोई रोग नहीं होगा। अगर आपके ऊर्जा शरीर में संतुलन है, तो दिमाग और शरीर दोनों में रोगों का होना नामुमकिन है। अलग-अलग रोगों से पीडि़त लोग यहां आते हैं। दिल का रोग है तो इलाज वही है। अस्थमा है तो भी इलाज वही है। मधुमेह है तो भी वही इलाज है। वैसे पहले ये जान लीजिए कि यह इलाज है ही नहीं। हम तो बस स्वास्थ्य को ठीक करने की चेष्टा करते हैं। हम तो बस आपके तंत्र को बेहतर बनाते हैं।
योग का काम आमतौर पर प्राणमय कोष के स्तर पर होता है। आप प्राणमय कोष से शुरुआत करते हैं। प्राणायाम के माध्यम से आप जो भी करते हैं, वह प्राणमय कोष का व्यायाम ही है।
आप मणिपूरक चक्र  को देखें, यह शरीर को दो हिस्सों में बांटता है। इसी के चलते ऐसे लोगों के शरीर का निचला हिस्सा गर्म होता है और ऊपरी हिस्सा शीतल हो चुका होता है। इसमें एक संतुलन की आवश्यकता होती है। सूर्य नमस्कार और कुछ आसनों का अभ्यास करने से यह संतुलन हासिल किया जा सकता है।

योगिक अभ्यास

सूर्य नमस्कार और आसन: इनसे मरीज के शरीर में संतुलन आता है। जिन लोगों को साइनिसाइटिस यानी नजला और दमा का रोग है, उनमें नासिका छिद्र बंद होने की समस्या को यह दूर करता है। इनसे शरीर के लिए आवश्यक व्यायाम हो जाता है। शरीर के लिए आवश्यक ऊष्मा भी इनसे पैदा होती है। सूर्य नमस्कार से शरीर के भीतर इतनी ऊर्जा पैदा होती है कि इसका निरंतर अभ्यास करने वालों को बाहर की सर्दी प्रभावित नहीं कर पाती।

प्राणायाम

दमा कई तरह के होते हैं। कुछ एलर्जिक होते हैं, कुछ ब्रोंकाइल होते हैं और कुछ साइकोसोमैटिक  या मनकायिक होते हैं। अगर मामला मनकायिक है तो ईशा योग करने से यह ठीक हो सकता है। ईशा योग करने से इंसान मानसिक तौर से शांत और सतर्क हो जाता है और उसका दमा ठीक हो जाता है। अगर यह एलर्जी की वजह से है तो प्राणायाम करने से यह निश्चित तौर पर ठीक हो सकता है। ईशा योग में जो प्राणायाम सिखाया जाता है, उससे ब्रोंकाइल संबंधी दिक्कत कम हो जाती हैं। अगर एक से दो हफ्तों तक प्राणायाम का रोजाना सही तरीके से अभ्यास कर लिया जाए तो दमा के मरीजों को पचहत्तर फीसदी तक का फायदा महसूस होगा।

क्या आपको मालूम है कैसे होता है कब्ज


अक्सर आपकी सुबह कब्ज की समस्या से गुजरती है क्या आप सुबह देर तक वॉशरूम में बैठे रहते हैं अगर हां, तो अब देर ना करें और अपनी इस दशा का तुरंत निदान करें। कब्ज होने के कई कारण हो सकते हैं, जिसके बारे में कई लोग अंजान हैं। कब्ज से छुटकारा पाने के  घरेलू उपचार आपको कब्ज, शरीर में कमजोरी, हाईपोथायराइड या सही मात्रा में पानी ना पीने, आदि के कारण सकता है। कब्ज की समस्या दवाइयां खाने के कारण भी हो सकती है। एक बार अगर कब्ज होने का कारण पता चल जाए, तो आप इसका सही से निदान करना भी सीख जाएंगे।
आइये जानते हैं कि कब्ज की समस्या के पीछे आखिर कौन-कौन से कारण छिपे हुए हैं कब्ज के पीछे छिपे हैं ये अजीब कारण पेनकिलर एस्पिरिन और आइब्रूफेन दो ऐसी पेनकिलर्स हैं, जो व्यस्कों में कब्ज पैदा करने के लिये जानी जाती हैं। ऐसे रोगी जो किसी कारणवश इन दवाओं का सेवन कर रहे हैं, उन्हें दिनभर में खूब सारा पानी पीना चाहिये।
  • हाइपोथायराइडिज्म जिनकी थायराइड ग्रंथी ठीक से काम नहीं करती, उनका मेटाबॉलिज्म कमज़ोर हो जाता है। यह पेट पर भी लागू होता है। इस तरह से खाया गया खाना बडी ही देरी से पचता है और कब्ज हो जाता है।
  • एलर्जी कई लोग ऐसे होते हैं जिन्हें दूध, दही और दूध से बनने वाले प्रोडक्ट हजम नहीं होते। इससे उन्हें कब्ज हो जाता है और कई बार तो उन्हें डायरिया भी हो जाता है।
  • व्यायाम में कमी व्यायाम करने से शरीर में मल को निकालने वाला पदार्थ जिसे हम म्यूकस कहते हैं, वह बनता है। लेकिन जब हम व्यायाम नहीं करते हैं या फिर हमारी लाइफस्टाइल में किसी भी प्रकार की दौड भाग नहीं रहती, तो यह बनना बंद हो जाता है, जिससे कब्ज हो जाता है।
  • विटामिन अच्छी सेहत के लिये हम सभी विटामिन का सेवन करते हैं। पर जब यह विटामिन हमारे शरीर में रिएक्ट करने लगे तो कब्ज जैसी समस्या पैदा हो जाती है। हर विटामिन रिएक्शन नहीं पैदा करते। लेकिन कैल्शियम और आयरन कभी-कभी सूट नहीं करते।
  • टॉयलेट को कंट्रोल करने से कई लोगों की आदत होती है कि वह पब्लिक टॉयलेट में जाना पसंद नहीं करते। ऐसा कई बार करने से कब्ज की समस्या पैदा होती है।
  • डिप्रेशन लेने से भी कब्ज होता, यह बात बहुत कम लोग जानते हैं। जब तनावपूर्ण फीलिंग पैदा होती है, तो शरीर का मेटाबॉलिज्म कमजोर पड़ जाता है।
  • एंटासिड सीने में जलन पैदा होने पर अगर आप एंटासिड खाते हैं, तो भी कब्ज हो सकता है। क्योंकि इस दवाई में कैल्शियम और एल्यूमीनियम के घटक होते हैं।
  • पानी की कमी पानी ना पीना भी कब्ज की बीमारी पैदा करता है। अगर आपकी समस्या बहुत ज्यादा बढ़ चुकी है, तो आप गरम पानी का सेवन करें।
  • गर्भावस्था अगर आप गर्भवती हैं तो आप को कई दिनों तक कब्ज की समस्या रह सकती है। आप को इसका इलाज चिकित्सक की देखरेख करवाना चाहिए।

बच्चों में बढ़ती कब्ज़ की समस्या कारण और निवारण


स्वस्थ शरीर भगवान की अनुपम भेंट हे स्वस्थ पाचन तत्रं हमारे स्वास्थ का अभिन्न् भाग है। पाचन तंत्र की समस्याओं से अनेक रोगों का जन्म होता है वर्तमान में बदलती जीवन शैली और खान-पान से हमारा स्वास्थय बहुत प्रभावीत हुआ है । विषेषकर बच्चों में इस करण से बहुत सी समस्याएंॅ जन्म ले रही है। खराब पाचन और कब्ज की समस्या बच्चों में विकराल रूप धारण करती जा रही है । प्रस्तुत है इस समस्या से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य तथा मुख्य कारण एवं निवारण ।
बच्चों में कब्ज की उम्र क्या होती है।

बच्चों में कब्ज़ दो उम्र में ज्यादा पाया जाता है

1- जन्मजात
2- ऊपर का आहर शुरू करनें के पश्चात अर्थात जब बच्चा मॉं के दूध के अतिरिक्त ऊपरी आहार लेना शुरू कर दे इसके अलावा स्कूल जाने वाले बच्चों में अव्यवस्थित शौच की आदतों के कारण भी अधिकांश बच्चों में यह समस्या जन्म लेती है ।
बच्चों कब्ज़ के मुख्य कारण क्या है।
बच्चों में कब्ज़ के मुख्य कारण इस प्रकार है ।
1- जन्म से कब्ज़/ शौच न करना: ऑतों में नसों की चाल न  होने से/ ऐसी समस्या के लिए तुरन्त शिशु शल्य चिकित्सक (अतिविशेषज्ञ) से परामर्श लेना चाहिए ।
2- जन्म के बाद बढ़ती उम्र में कब्ज़ का होना भोजन की अनियमितताओं को इंगित करता है । यह समस्या नियमित भोजन और व्यवस्थित दिनचर्या  एवं दवाईयों से ठीक हो सकती है
3- कुछ बच्चों में रीढ की हड्डी, स्नायु तंत्र एवं नसों से संबंधित रोगो के कारण भी यह समस्यां  हो सकती है ।
4- उपर्युक्त तीनों ही स्थितीयों में पीडियाट्रिक सर्जन (बच्चों के सुपरस्पेशिलिस्ट सर्जन) का परामर्श लेना नितांत आवश्यक है। जन्मजात एवं स्नायु रोग संबंधित समस्याओं को इस लेख में शामिल नहीं किया गया है।

बच्चों में कब्ज़ के क्या-क्या- लक्षण होते है ।

बच्चों में कब्ज़ की बीमारी भिन्न-2 रूप से प्रस्तुत होती है। इसका मुख्य कारण प्रतिदिन शौच न करना या 2-3 दिन के अंतर पर ही शौच क्रिया करना है। अधिकांष बच्चों में यह समस्या समय के साथ बढ़ती जाती है। और उनमें कड़ा एवं सूखा मल होना तथा शौच के दौरान रोग इत्यादि लक्षण प्राय: पाये जाते है । ये बच्चें शौच क्रिया के लिए बैठने के बजाय खडे खडे मल-त्याग करते है । कुछ बच्चेे जो कि  प्रतिदिन शौचालय जाते है परन्तु उनका कोई निश्चित समय नहीं होता वे भी कब्ज़ की श्रेणी में ही आते हैं और इनमें यह समस्या बढ़ती जाती है। अधिक समस्या होने पर शौच का रास्ता/मलद्वार बाहर भी निकलता है

वीनिंग क्या है और इसका सही तरीका क्या है।

प्रारंभिक लगभग 6 माह तक मां का दूध ही शिशु के लिए सर्वोत्तम आहार है । इसके बाद उसको मां के दूध के अतिरिक्त भी पोषण की आवष्यकता होती है  जो कि उपरी भेाजन द्वारा पूरा किया जाना चाहिए । मॉं के दूध से उपरी आहार के परिवर्तन की प्रक्रिया को वीनिंग कहते है । इसके लिए बच्चे को मॉ के दूध के अतिरिक्त दाल का पानी, उबला चावल का पानी, दलिया, खिचड़ी, आलू इत्यादी शुरू किया जाता है और धीरे- धीरे उपरी आहार की मात्रा बढ़ाते हुए मां के दूध की मात्रा को घटाया जाता है।

बच्चों को कब्ज से दूर रखने हेतु कैसा भोजन लें!

बच्चों में कब्ज से बचने के लिए भोजन का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। इसके लिए निम्नलिखित भोजन का सेवन करें।
क्या खाएं- हरी पत्तेदार सब्जी, सलाद, फल, खिचडी, दलिया, दाल-चावल, /रोटी, अंडा, केला, दूध, (उपयूक्त मात्रा में ) और पानी अच्छी मात्रा में पिएं ।
क्या न खाएं- टॉफी, चॉकलेट, बिस्किट, चिप्स इत्यादी , मैदा का सामान तली चीज़े (समोसा, कचौरी) अधिक मिर्च एवं चिकनाई,  नमकीन/मिक्चर और अत्यअधिक दूध का सेवन बिल्कुल न करें ।
कब्ज़ से बचने के लिए दिनचर्या में क्या परिवर्तन होने चाहिए ।
कब्ज़ आदि समस्याओं से बचने के लिए दिनचर्या व्यस्थित होना आवश्यक है । इसके लिए प्रतिदिन बच्चों को प्रात: एक कप गुनगुना (हल्का गर्म) दूध देकर 10 मिनट शौच के लिए अवश्य बैठायें। शौच न होने पर भी इसे छोड़ें नहीं और कम से कम 1 माह तक इसका पालन करें और भोजन में लिए परहेज़ का पालन करें । इसके अतिरिक्त बच्चों को साफ़ पानी अच्छी मात्रा में पिलाएंॅ और प्रति 2-3 घंटे में मूत्र-त्याग करनें कों कहें । बाहरी भेाजन से बचें और शारीरिक स्वच्छता का ध्यान रखें । बच्चें के शौच का समय प्रात: काल निश्चित करने का प्रयास करें ।

बच्चों में कब्ज़ की समस्या क्या पूर्ण रूप से ठीक हो सकती है ।

हॉ. बच्चों में कब्ज़ की समस्या  का निवारण पूर्ण रूप  से किया जा सकता है परन्तु उसके लिए उचित चिकित्सकीय परामर्श की महती विशेषता है। योग्य शिशु शल्य चिकित्सक का परामर्श लें। भोजन में आवश्यक परिवर्तन और बच्चों की दिनचर्या को नियंमित करें तो इस समस्या पर काबू पाया जा सकता है। यदि इसका सही समय पर उपचार न हो तो समय के साथ यह समस्या विकराल रूप धारण कर लेती है और बच्चे के शारीरिक एवं मानसिक विकास पर इसका विपरीत प्रभाप पड़ता है। कुछ बच्चों में इसके कारण सर्जरी भी करनी पड़ सकती है ।
नोट: जन्मजात एवं स्नायुरोग संबंधित पाचन तंत्र समस्याओं को इस आलेख में शामिल नहीं किया गया है। इसके लिए पीडियाट्रिक सर्जन से मिल कर परार्मश लेना उचित है ।

ओट्स खाने के 10 फायदे


ओट्स या जई आसानी से पच जाने वाले फाइबर का जबरदस्त स्रोत है। साथ ही यह कॉम्पलेक्स कार्बोहाइडेट्स का भी अच्छा स्रोत है। ओट्स हृदय संबंधी बीमारियों के खतरे को कम करता है। बशर्ते इसे लो सैच्यूरेटिड फैट के साथ लिया जाए। ओट्स एलडीएल की क्लियरेंस बढ़ाता है। ओट्स में फोलिक एसिड होता है जो बढ़ती उम्र वाले बच्चों के लिए बहुत उपयोगी होता है। यह एंटीकैंसर भी होता है। चेहरे के लिये ओटमील फेस स्क्रब ओट में कैल्शियम, जिंक, मैग्नीज, आयरन और विटामिन-बी और ई भरपूर मात्रा में होते हैं। जो लोग डिसलिपिडेमिया और डायबिटीज से पीडि़त हैं उन्हें ओट्स फायदेमंद होता है। गर्भवती महिलाओं और बढ़ते बच्चों को भी ओट्स खाना चाहिए। आईये जाने कुछ और ऐसे ही फायदे-

कोलेस्ट्रॉल

ओट्स में मौजूद बीटा ग्लूकॉन नामक गाढा चिपचिपा तत्व हमारी आंतों की सफाई करते हुए कब्ज की समस्या दूर करता है। इसकी वजह से शरीर में बुरे कोलेस्ट्रॉल जमा नहीं हो पाता। अगर तीन महीने तक नियमित रूप से ओट्स का सेवन किया जाए तो इससे कोलेस्ट्रॉल के स्तर में 5 प्रतिशत तक कमी लाई जा सकती है।

हृदय

ओट्स का सेवन दिल के लिये काफी फायदेमंद होता है। ओट्स में खूब फाइबर मौजूद होता है, और इसमें फॉलीबल फाइबर होता है जो दिल के लिये बहुत अच्छा होता है यही नहीं यह दूसरी बीमारियों से भी बचाता है। इससे शुगर लेवल कम रहता है।

वजन घटाए

इसमें इनसॉल्यूबल और सॉल्यूबल फाइबर होता है, जो फैट बर्निंग के लिए काफी अच्छा है, साथ ही प्रोटीन भी मौजूद होने से पेट भर जाता है। जो लोग जिम जाने का या व्यायाम करने का समय नहीं निकल पाते हैं, वे ओट्स खा के अपना वजन जल्दी और आसान तरीके से कर सकते हैं।

उच्च रक्तचाप

उच्च रक्तचाप हमारे हृदय के लिए बहुत ज्यादा खतरनाक है , इसे समय रहते अगर रोका ना गया तो यह इंसान की जान भी ले सकता है। इससे बचने का सबसे अच्छा उपाय है ओट्स। ओट्स खाने से उच्च रक्तचाप की परेशानी कम होती है क्योंकि इसमें फाइबर होता है जो कोलेस्ट्रोल को नियंत्रित रखता है।

स्तन कैंसर

ओट्स में लिग्नंस और एन्टेरोलैक्टोने जैसे फीटो केमिकल पाए जाते हैं जो कैंसर से लडऩे में सहायक हैं। एन्टेरोलैक्टोने विशेष रूप से, स्तन और अन्य हार्मोन से संबंधित कैंसर की रोकथाम में सहायक है।

इन्टेस्टाइन

आंत और मलाशय के लिए काफी फायदेमंद होता है। ओट्स उनके लिए बहुत लाभदायक है जो लोग अल्सरेटिव कोलाइटिस से पीडि़त हैं। इसे रोज़ खाने से कब्ज़ जैसी परेशानियों से निजात मिल जाता है।

ब्लड शुगर

ब्लड शुगर लेवल को स्थिर रखता है ओट्स में कार्बोहाइड्रेट काफी अच्छी मात्रा में पाया जाता है, जो आपको ऊर्जा देती है। फाइबर की मात्रा ज्यादा होने की वजह से यह धीरे धीरे पचता है, जिसकी वजह से रक्त में मौजूद ग्लूकोस का स्तर बढ़ता नहीं है। अध्ययनों से यह भी पता चला है कि इसको नियमित खाने से टाइप 2 मधुमेह का खतरा काम हो जाता है।

तनाव

ओट्स में फाइबर और मैग्नीशियम पाया जाता है जो दिमाग में सेरोटोनिन की मात्रा बढ़ाता है, जिससे मस्तिष्क शांत रहता है। जिसकी वजह से आपका मूड अच्छा रहता है और नींद भी अच्छी आती है। आप चाहें तो इसमें ब्लूबेरी भी डाल के खा सकते हैं, जिस में एंटीऑक्सीडेंट और विटामिन सी पाया जाता है जो तनाव से लडऩे में मदद करता है।

बूस्ट इम्यूनटी

साबुत अनाज में ओट्स खाने से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। ओट्स में मौजूद फाइबर आपके पाचन तंत्र को मजबूत करता है।

त्वचा 

यह हमारी त्वचा के लिए भी बहुत लाभदायक है। यह त्वचा को नमी देता है साथ ही जिनकी त्वचा बहुत ज्यादा रूखी या उसमें बहुत खुजली और जलन होती है तो ओट्स बहुत उपयोगी है।

बवासीर की परेशानी में खाए यह आहार


पाइल्स को बवासीर के नाम से भी जाना जाता है। यह बहुत ही खतरनाक बीमारी है जिसमें मलद्वार के अंदर खून की नसें फूल जाती हैं। मलत्याग के समय अधिक जोर लगाने पर गुदा मार्ग में उपस्थित खून की नसें फूल जाती हैं, जो पाइल्स का कारण बनती हैं। पाइल्स की बीमारी लगभग हर इसांन को अपने जीवन मे कभी ना कभी जरुर होती ही है। कुछ व्यक्तियों में यह रोग पीढ़ी दर पीढ़ी पाया जाता है। इसके लक्षणों में, शौच के दौरान लाल रंग का खून आना, चिकने पदार्थ का रिसाव होना, मलद्वार में खुजली चलना, खून की कमी से कमजोरी, चक्कर आना, थकान होना, भूख नहीं लगना और लगातार कब्ज रहना आदि होता है। मरीज संकोचवश चिकित्सक से समय पर नहीं मिलता और इसी वजह से यह तकलीफ बढ़ जाती है और स्वास्थ्य खराब होने लगता है। अगर आपको भी यह बीमारी है तो, उसे स्वस्थ्य खान-पान से ठीक किया जा सकता है। आइये देखते हैं कि कौन से हैं वे आहार।
  • घुलनशील रेशा युक्त आहार ना केवल पाइल्स को ठीक करेगा बल्कि कब्ज की समस्या से भी छुटकारा दिलाएगा। रोजाना ताजे फल और सब्जियों का सेवन करें और इस बीमारी से निजात पाएं।
  • कुछ तरह की फलियां जैसे, बींस, राजमा, सोया बींस, काली बींस, मटर और दाल आदि में बहुत फाइबर पाया जाता है, जो कि आसानी से हजम भी हो जाते हैं और आंत में जा कर चिपकते भी नहीं हैं।
  • मसालेदार भोजन और आधा पका हुआ भोजन का सेवन बिल्कुल भी ना करें क्योंकि इससे कब्ज होता है। इसके अलावा शराब का सेवन करते हैं तो वो भी बंद कर दें।
  • आम, मौसम्बी, अंजीर और जामुन का ज्यूस पीने से यह समस्या दूर होगी। इसके अलावा अधिक कॉफी भी नुकसानदेह है क्योंकि यह शरीर में पानी की कमी पैदा करती है।
  • सिट्रस या खट्टे फल जैसे, नींबू, संतरा, मुसम्मी, चीज़, दही, सेब, और टमाटर पाइल्स को प्राकृतिक तरीके से ठीक करते हैं। इन्हें अपने आहार में जरुर शामिल करें।
  •  रात को सोने से पहले पानी में अंजीर या खजूर को भिगोने के बाद सुबह खाली पेट इन्हें खा लें। इन दोनों में काफी फाइबर पाया जाता है जो कि पेट के हर रोग को ठीक कर देता है। इसके अलावा रोजाना एक्सरसाइज भी करें।
  • पाइल्स का रोग ठीक करने में केला भी बडा़ लाभदायक साबित होता है। रोजाना खाना खाने के बाद या फिर सुबह खाली पेट केले का सेवन करें।
  • प्राकृतिक रूप से पाइल्स को ठीक करने के लिये खूब पानी पीजिये। दिन में करीब 8-10 गिलास पानी जरुर पिये। इसके अलावा फ्रेश फ्रूट ज्यूस और सब्जियों का सूप पीजिये।

बवासीर


हे मोरोइड गुदा-नाल में वाहिकाओं की वे संरचनाएं हैं जो मल नियंत्रण में सहायता करती हैं।जब वे सूज जाते हैं या बड़े हो जाते हैं तो वे रोगजनक या बवासीर हो जाते हैं। अपनी शारीरिक अवस्था में वे धमनीय-शिरापरक वाहिका और संयोजी ऊतक द्वारा बने कुशन के रूप में काम करते हैं। मनुष्य की गुदा में तीन आवृत या बलियां होती हैं जिन्हें प्रवाहिणी, विर्सजनी व संवरणी कहते हैं जिनमें ही अर्श या बवासीर के मस्से होते हैं आम भाषा में बवासीर को दो नाम दिये गए है बादी बवासीर और खूनी बवासीर। बादी बवासीर में गुदा में सुजन, दर्द व मस्सों का फूलना आदि लक्षण होते हैं कभी-कभी मल की रगड़ खाने से एकाध बूंद खून की भी आ जाती है। लेकिन खूनी बवासीर में बाहर कुछ भी दिखाई नहीं देता लेकिन पाखाना जाते समय बहुत वेदना होती है और खून भी बहुत गिरता है जिसके कारण रक्ताल्पता होकर रोगी कमजोरी महसूस करता है। रोगजनक अर्श के लक्षण उपस्थित प्रकार पर निर्भर करते हैं। आंतरिक अर्श में आम तौर पर दर्द-रहित गुदा रक्तस्राव होता है जबकि वाह्य अर्श कुछ लक्षण पैदा कर सकता है या यदि थ्रोम्बोस्ड (रक्त का थक्का बनना) हो तो गुदा क्षेत्र में काफी दर्द व सूजन होता है। बहुत से लोग गुदा-मलाशय क्षेत्र के आसपास होने वाले किसी लक्षण को गलत रूप से 'बवासीरÓ कह देते हैं जबकि लक्षणों के गंभीर कारणों को खारिज किया जाना चाहिए। हालांकि बवासीर के सटीक कारण अज्ञात हैं, फिर भी कई सारे ऐसे कारक हैं जो अंतर-उदर दबाव को बढ़ावा देते हैं- विशेष रूप से कब्ज़ और जिनको इसके विकास में एक भूमिका निभाते पाया जाता है।
हल्के से मध्यम रोग के लिए आरंभिक उपचार में फाइबर (रेशेदार) आहार, जलयोजन बनाए रखने के लिए मौखिक रूप से लिए जाने वाले तरल पदार्थ की बढ़ी मात्रा, दर्द से आराम के लिए (गैर-एस्टरॉएड सूजन रोधी दवा) और आराम, शामिल हैं। यदि लक्षण गंभीर हों और परम्परागत उपायों से ठीक न होते हों तो अनेक हल्की प्रक्रियाएं अपनायी जा सकती हैं। शल्यक्रिया का उपाय उन लोगों के लिए आरक्षित है जिनमें इन उपायों का पालन करने से आराम न मिलता हो। लगभग आधे लोगों को, उनके जीवन काल में किसी न किसी समय बवासीर की समस्या होती है। परिणाम आमतौर पर अच्छे रहते हैं।

वर्गीकरण एवं बाह्य साधन

बवासीर या पाइल्स एक ख़तरनाक बीमारी है। बवासीर 2 प्रकार की होती है। आम भाषा में इसको ख़ूँनी और बादी बवासीर के नाम से जाना जाता है। कही पर इसे महेशी के नाम से जाना जाता है।
खूनी बवासीर : खूनी बवासीर में किसी प्रकार की तकलीफ नही होती है केवल खून आता है। पहले पखाने में लगके, फिर टपक के, फिर पिचकारी की तरह से सिफॅ खून आने लगता है। इसके अन्दर मस्सा होता है। जो कि अन्दर की तरफ होता है फिर बाद में बाहर आने लगता है। मल के बाद अपने से अन्दर चला जाता है। पुराना होने पर बाहर आने पर हाथ से दबाने पर ही अन्दर जाता है। आखिरी स्टेज में हाथ से दबाने पर भी अन्दर नही जाता है।
बादी बवासीर : बादी बवासीर रहने पर पेट खराब रहता है। कब्ज बना रहता है। गैस बनती है। बवासीर की वजह से पेट बराबर खराब रहता है। न कि पेट गड़बड़ की वजह से बवासीर होती है। इसमें जलन, दर्द, खुजली, शरीर मै बेचैनी, काम में मन न लगना इत्यादि। मल कड़ा होने पर इसमें खून भी आ सकता है। इसमें मस्सा अन्दर होता है। मस्सा अन्दर होने की वजह से पखाने का रास्ता छोटा पड़ता है और वहाँ घाव हो जाता है उसे डाक्टर अपनी जुबान में फिशर भी कहते हें। जिससे असहाय जलन और पीडा होती है। बवासीर बहुत पुराना होने पर भगन्दर हो जाता है। जिसे अंग्रेजी में फिश्चुला कहते हें। भगन्दर में मल के रास्ते के बगल से एक छेद हो जाता है जो पखाने की नली में चला जाता है। और फोड़े की शक्ल में फटता, बहता और सूखता रहता है। कुछ दिन बाद इसी रास्ते से पखाना भी आने लगता है। बवासीर, भगन्दर की आखिरी स्टेज होने पर यह कैंसर का रूप ले लेता है। जिसको रेक्टम कैंसर कहते हैं। जो कि जानलेवा साबित होता है।

कारण

कुछ व्यक्तियों में यह रोग पीढ़ी दर पीढ़ी पाया जाता है। अत: अनुवांशिकता इस रोग का एक कारण हो सकता है। जिन व्यक्तियों को अपने रोजगार की वजह से घंटों खड़े रहना पड़ता हो, जैसे बस कंडक्टर, ट्रॉफिक पुलिस, पोस्टमैन या जिन्हें भारी वजन उठाने पड़ते हों,- जैसे कुली, मजदूर, भारोत्तलक वगैरह, उनमें इस बीमारी से पीडि़त होने की संभावना अधिक होती है। कब्ज भी बवासीर को जन्म देती है, कब्ज की वजह से मल सूखा और कठोर हो जाता है जिसकी वजह से उसका निकास आसानी से नहीं हो पाता मलत्याग के वक्त रोगी को काफी वक्त तक पखाने में उकडू बैठे रहना पड़ता है, जिससे रक्त वाहनियों पर जोर पड़ता है और वह फूलकर लटक जाती हैं। बवासीर गुदा के कैंसर की वजह से या मूत्र मार्ग में रूकावट की वजह से या गर्भावस्था में भी हो सकता है।

उपचार

रोग निदान के पश्चात प्रारंभिक अवस्था में कुछ घरेलू उपायों द्वारा रोग की तकलीफों पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है। सबसे पहले कब्ज को दूर कर मल त्याग को सामान्य और नियमित करना आवश्यक है। इसके लिये तरल पदार्थों, हरी सब्जियों एवं फलों का बहुतायात में सेवन करें। तली हुई चीजें, मिर्च-मसालों युक्त गरिष्ठ भोजन न करें। रात में सोते समय एक गिलास पानी में इसबगोल की भूसी के दो चम्मच डालकर पीने से भी लाभ होता है। गुदा के भीतर रात के सोने से पहले और सुबह मल त्याग के पूर्व दवायुक्त बत्ती या क्रीम का प्रवेश भी मल निकास को सुगम करता है। गुदा के बाहर लटके और सूजे हुए मस्सों पर ग्लिसरीन और मैग्नेशियम सल्फेट के मिश्रण का लेप लगाकर पट्टी बांधने से भी लाभ होता है। मलत्याग के पश्चात गुदा के आसपास की अच्छी तरह सफाई और गर्म पानी का सेंक करना भी फायदेमंद होता है। यदि उपरोक्त उपायों के पश्चात भी रक्त स्राव होता है तो चिकित्सक से सलाह लें। इन मस्सों को हटाने के लिये कई विधियां उपलब्ध है। मस्सों में इंजेक्शन द्वारा ऐसी दवा का प्रवेश जिससे मस्से सूख जायें। मस्सों पर एक विशेष उपकरण द्वारा रबर के छल्ले चढ़ा दिये जाते हैं, जो मस्सों का रक्त प्रवाह अवरूध्द कर उन्हें सुखाकर निकाल देते हैं। एक अन्य उपकरण द्वारा मस्सों को बर्फ में परिवर्तित कर नष्ट किया जाता है। शल्यक्रिया द्वारा मस्सों को काटकर निकाल दिया जाता है।

भगन्दर : पस्त होने की जरूरत नहीं


भगन्दर गुदा क्षेत्र में होने वाली एक ऐसी बीमारी है जिसमें गुदा द्वार के आस पास एक फुंसी या फोड़ा जैसा बन जाता है जो एक पाइपनुमा रास्ता बनाता हुआ गुदामार्ग या मलाशय में खुलता है। शल्य चिकित्सा के प्राचीन भारत के आचार्य सुश्रुत ने भगन्दर रोग की गणना आठ ऐसे रोगों में की है जिन्हें कठिनाई से ठीक किया जा सकता है। इन आठ रोगों को उन्होंने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ सुश्रुत संहिता में 'अष्ठ महागदÓ कहा है।

भगन्दर कैसे बनता है?

गुदा-नलिका जो कि एक व्यस्क मानव में लगभग 4 से.मी. लम्बी होती है, के अन्दर कुछ ग्रंथियां होती हैं व इन्ही के पास कुछ सूक्ष्म गड्ढे जैसे होते है जिन्हें एनल क्रिप्ट कहते हैं; ऐसा माना जाता है कि इन क्रिप्ट में स्थानीय संक्रमण के कारण स्थानिक शोथ हो जाता है जो धीरे धीरे बढ़कर एक फुंसी या फोड़े के रूप में गुदा द्वार के आस पास किसी भी जगह दिखाई देता है। यह अपने आप फूट जाता है। गुदा के पास की त्वचा के जिस बिंदु पर यह फूटता है, उसे भगन्दर की बाहरी ओपनिंग कहते हैं।
भगन्दर के बारे में विशेष बात यह है कि अधिकाँश लोग इसे एक साधारण फोड़ा या बालतोड़ समझकर टालते रहते हैं, परन्तु वास्तविकता यह है कि जहाँ साधारण फुंसी या बालतोड़ पसीने की ग्रंथियों के इन्फेक्शन के कारण होता है, जो कि त्वचा में स्थित होती हैं; वहीँ भगन्दर की शुरुआत गुदा के अन्दर से होती है तथा इसका इन्फेक्शन एक पाइपनुमा रास्ता बनाता हुआ बाहर की ओर खुलता है। कभी कभी भगन्दर का फोड़ा तो बनता है, परन्तु वो बाहर अपने आप नहीं फूटता है। ऐसी अवस्था में सूजन काफी होती है और दर्द भी काफी होता है।

भगन्दर के लक्षण

  • गुदा के आस पास एक फुंसी या फोड़े का निकलना जिससे रुक-रुक कर मवाद (पस) निकलता है
  • कभी कभी इस फुंसी/फोड़े से गैस या मल भी निकलता है।
  • प्रभावित क्षेत्र में दर्द का होना
  • प्रभावित क्षेत्र में व आस पास खुजली होना
  • पीडि़त रोगी के मवाद के कारण कपडे अक्सर गंदे हो जाते हैं।

भगन्दर प्रकार

आचार्य सुश्रुत ने भगन्दर पीडिका और रास्ते की आकृति व वात पित्त कफ़ दोषों के अनुसार भगन्दर के निम्न 5 भेद बताएं हैं;
    शतपोनक
    उष्ट्रग्रीव
    परिस्रावी
    शम्बुकावृत्त
    उन्मार्गी
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के अनुसार भी फिश्चुला का कई प्रकार से वर्गीकरण किया गया है परन्तु चिकित्सा की दृष्टि से दो प्रकार का वर्गीकरण उपयोगी है;
लो-एनल : चिकित्सा की द्रष्टि से सरल माना जाता है।
हाई-एनल : चिकित्सा की दृष्टि से कठिन माना जाता है।

भगन्दर का निदान

चिकित्सक स्थानिक परीक्षण द्वारा भगन्दर का चेक-अप करते हैं तथा एक विशेष यन्त्र एषनी के द्वारा भगन्दर के रास्ते का पता किया जाता है।
आजकल एक विशेष एक्स रे जिसे फिस्टुलोग्राम कहते है, की सहायता से भगन्दर के ट्रैक का पता किया जाता है। इसके अतिरिक्त कभी-कभी एमआरआइ की सलाह भी चिकित्सक
देते हैं।

आयुर्वेद क्षार सूत्र चिकित्सा

आयुर्वेद में एक विशेष शल्य प्रक्रिया जिसे क्षार सूत्र चिकित्सा कहते हैं, के द्वारा भगन्दर पूर्ण रूप से ठीक हो जाता है। इस विधि में एक औषधियुक्त सूत्र (धागे) को भगन्दर के ट्रैक में चिकित्सक द्वारा एक विशेष तकनीक से स्थापित कर दिया जाता है। क्षार सूत्र पर लगी औषधियां भगन्दर के ट्रैक को साफ़ करती हैं व एक नियंत्रित गति से इसे धीरे धीरे काटती हैं। इस विधि में चिकित्सक को प्रति सप्ताह पुराने सूत्र के स्थान पर नया सूत्र रखते है।

कारण

भगंदर होने के कई कारण हो सकते है। कुछ प्रमुख कारण निम्न प्रकार है-
  •     गुदामार्ग की अस्वच्छता।
  •     लगातार लम्बे समय तक कब्ज बने रहना।
  •     अत्यधिक साइकिल या घोड़े की सवारी करना।
  •     बहुत अधिक समय तक कठोर, ठंडे गीले स्थान पर बैठना।
  •     गुदामैथुन की प्रवृत्ति।
  •     मलद्वार के पास उपस्थित कृमियों के उपद्रव के कारण।
  •     गुदा में खुजली होने पर उसे नाखून आदि से खुरच देने के कारण बने घाव के फलस्वरूप।
  •     गुदा में आघात लगने या कट - फट जाने पर।
  •     गुदा मार्ग पर फोड़ा-फुंसी हों जाने पर।
  •     गुदा मार्ग से किसी नुकीले वस्तु के प्रवेश कराने के उपरांत बने घाव से।
  •     आयुर्वेदानुसार जब किसी भी कारण से वात और कफ प्रकुपित हो जाता है तो इस रोग के उत्पत्ति होती है।

ज्यादा पसीना आता है सावधान हो जाएं


गर्मी में सामान्य पसीना आना तो ठीक है, लेकिन अधिक पसीना आना और सर्दी में भी पसीना आना एक समस्या हो सकती है। यह समस्या कई बार आपको दुर्गंध का शिकार बना कर आपको असहज कर सकती है। इस लक्षण को हाइपरहाइड्रोसिस कहा जाता है।
पसीना लगातार आए तो शारीरिक और मानसिक, दोनों तरह की असहजता पैदा हो सकती है। अत्यधिक पसीने से जब हाथ, पैर  और बगलें (कांख) तर हो जाती हैं तो इस स्थिति को प्राइमरी या फोकल हाइपरहाइड्रोसिस कहा जाता है। प्राइमरी हाइपरहाइड्रोसिस से 2-3 प्रतिशत आबादी प्रभावित है, लेकिन इससे पीडि़त 40 प्रतिशत से भी कम व्यक्ति ही डॉक्टरी सलाह लेते हैं। इसके ज्यादातर मामलों में किसी कारण का पता नहीं चल पाता। हो सकता है कि यह समस्या परिवार में पहले से चली आ रही हो। यदि अत्यधिक पसीने की शिकायत किसी डॉक्टरी स्थिति के कारण होती है तो इसे सेकेंडरी हाइपरहाइड्रोसिस कहा जाता है। पसीना पूरे शरीर से भी निकल सकता है या फिर यह किसी खास स्थान से भी आ सकता है। दरअसल, हाइपरहाइड्रोसिस से पीडि़त व्यक्तियों को मौसम ठंडा रहने या उनके आराम करने के दौरान भी पसीना आ सकता है।

बचने के उपाय

प्रभावित व्यक्ति बोटॉक्स के नाम से मशहूर बोटुलिनम टॉक्सिन टाइप ए का कांख में इस्तेमाल करते हुए पसीने की शिकायत से बच सकते हैं। यह उसके अतिसक्रिय पसीना ग्रंथि की तंत्रिकाओं पर काम करते हुए उन्हें शांत करता है, जिससे पसीना आने की रफ्तार बहुत हद तक कम हो जाती है।

बोटॉक्स भी हो सकता है इलाज

बाजुओं से आने वाले पसीने, जिसे प्राइमरी एक्सिलरी हाइपरहाइड्रोसिस कहा जाता है, के इलाज के लिए बोटॉक्स को एफडीए से मंजूरी मिली हुई है। कम मात्रा में विशुद्घ बोटुलिनम टॉक्सिन का इंजेक्शन बाजुओं में लगाने से पसीने के लिए जिम्मेदार तंत्रिकाएं अस्थायी रूप से अवरुद्घ हो जाती हैं। एक्सिलरी हाइपरहाइड्रोसिस की स्थिति के लिए यह सर्वश्रेष्ठ विकल्प है, जिससे चार-महीने तक राहत मिल जाती है और शरीर की दुर्गंध से भी निजात मिल जाती है।
ललाट या चेहरे पर अत्यधिक पसीना आने जैसी फोकल हाइपरहाइड्रोसिस की स्थिति में मेसो बोटॉक्स सबसे अच्छा उपाय है। इसमें पसीने की रफ्तार कम करने के लिए त्वचा के संवेदनशील टिश्यू (डर्मिज) में बोटॉक्स के पतले घोल का इंजेक्शन लगाया जाता है।

अन्य उपाय

एंटीपर्सपिरेंट- अत्यधिक पसीने पर काबू पाने के लिए तेज एंटी-पर्सपिरेंट का इस्तेमाल किया जा सकता है, जो पसीने की नलिकाओं को अवरुद्घ कर देते हैं। बाजुओं में पसीने के शुरुआती इलाज के लिए 10 से 20 प्रतिशत अल्युमीनियम क्लोराइड हेक्साहाइड्रेट की मात्र वाले उत्पादों का इस्तेमाल किया जा सकता है। कुछ मरीजों को अल्युमीनियम क्लोराइड की अत्यधिक मात्रा वाले उत्पादों का इस्तेमाल करने की भी सलाह दी जा सकती है। ये उत्पाद प्रभावित हिस्सों में रात के वक्त इस्तेमाल किए जा सकते हैं। एंटीपर्सपिरेंट से त्वचा में खुजलाहट हो सकती है। इसकी अधिकता कपड़ों को नुकसान पहुंचा सकती है।
याद रखें - डियोडरेंट से पसीना रुकता नहीं है, बल्कि शरीर की दुर्गंध कम होती है।
दवाएं - ग्लाइकॉपीरोलेट (रोबिनुल, रोबिनुल-फोर्ट) जैसी एंटीकोलिनर्जिक दवाएं पसीने की ग्रंथियों को सक्रिय रहने से रोकती हैं। हालांकि कुछ मरीजों पर असरकारी रहने के बावजूद इन दवाओं के असर का अध्ययन नहीं किया गया है। इसके दुष्परिणाम में ड्राई माउथ, चक्कर तथा पेशाब संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।
ईटीएस (एंडोस्कोपिक थोरेसिस सिंपैथेक्टोमी)- गंभीर मामलों में सिंपैथेक्टोमी नामक न्यूनतम शल्यक्रिया पद्घति अपनाने की सलाह तब दी जाती है, जब अन्य उपाय विफल हो जाते हैं। यह उपाय उन मरीजों पर आजमाया जाता है, जिनकी हथेलियों पर सामान्य से ज्यादा पसीना आता है। इसका इस्तेमाल चेहरे पर अत्यधिक पसीना आने की स्थिति में भी किया जा सकता है।

इस मौसम में ऐसे बचाएं स्किन और आंखें


मौसम का मिजाज बदलने के साथ अब संक्रामक रोगों के पैर पसारने का खतरा मंडराने लगा है। भयंकर गर्मी और लू के थपेड़ों के बीच अब काफी छिटपुट बरसात तो कभी उमस के बीच कई तरह की बीमारी होना आम बात है। इनमें सबसे ज्यादा स्किन और आंखों की बीमारियां लोगों को परेशान करती हैं।
ऐसे में चिकित्सक त्वचा पर विशेष ध्यान देने और सफाई पर जोर दे रहे हैं, जिससे स्किन सम्बन्धी रोगों से बचा जा सके और ये फैले नहीं वहीं इस मौसम में सबसे ज्यादा आंखों पर ध्यान देने की सलाह भी विशेषज्ञ दे रहे हैं। डॉक्टरों के मुताबिक बदलते मौसम में अक्सर लोग अपनी आंख को लेकर लापरवाह हो जाते हैं, जो कभी-कभी बड़ी समस्या की वजह बन जाता है। इस मौसम में आंखों में वायरल संक्रमण होने का खतरा ज्यादा रहता है। चिकित्सकों के मुताबिक कुछ छोटी-छोटी बातों को ध्यान में रखकर इन परेशानियों से बचा जा सकता है।
चिकित्सकों के मुताबिक बैक्टीरिया, वायरस और दूसरी एलर्जी गर्मियों और बरसात के मौसम में पनपती है जो आंखों को अपना शिकार बना सकती है। अगर ऐसा संक्रमण हो जाए तो फौरन डॉक्टर की सलाह लें। इसे अनदेखा करने पर आंखों के कार्निया को नुकसान पहुंच सकता है इन संक्रमण से बचने के लिए कुछ उपाय राहत दे सकते हैं।
  • आंखों को मलने से बचें और किसी दूसरे का इस्तेमाल किया हुआ तौलियां न लें।
  • हाथों को हमेशा साफ रखें।
  • अपने 'कॉन्टैक्ट लैंसÓ को अच्छे से साफ करके उपयोग में लाएं।
  • धूप निकलने पर चश्मे का इस्तेमाल करें, चश्में केवल धूप से ही नहीं बल्कि धुएं और गंदगी से होने वाली एलर्जी से भी बचाते हैं।
  • पालतू जानवरों को न छूएं और उन्हें बिस्तर पर न चढऩे दें।
  • मेकअप का सामान किसी के साथ न बांटे।
  • गर्मी और बरसात के दौरान आंखों की सफाई पर विशेष ध्यान दें।

होम्योपैथिक और ज्वर


ज्वर या बुखार हमारे घरों मे सबसे ज्यादा होने बाली बीमारी है। बुखार कई प्रकार के और कई कारणों से होता है। साधारण ज्वर - यह कई कारणों से होता है। यह सांघातिक नही होता है, शरीर का तापक्रम 104-105 तक पहुँच जाता है। हाथ पैरों मे काफी दर्द, तेज सिरदर्द होना, कभी कभी वमन होना, बेचैनी या काफी सुस्ती होना, प्यास का होना या ना होना, पसीना आना, आदि लक्षण होते हैं। साधारणतया यह ज्वर 5 से 10 दिनों तक बना रहता है। ज्वर होने के कारणों के आधार पर इसे निम्न प्रकार में बांटा गया है -
  •     अचानक मौसम परिवर्तन के कारण होने वाला साधारण बुखार
  •     ठंड लगने के कारण होने वाला ज्वर
  •     लू लगने के कारण होने वाला ज्वर
  •     वर्षा में भींगने के कारण होने वाला ज्वर
  •     पेट की गड़बडिय़ों के कारण होने वाला ज्वर
  •     घाव, फोड़ों के पकने के कारण होने वाला ज्वर
  •     अत्यधिक शोक, या दु:ख के कारण होना

ज्वर का ईलाज

एकोनाइट

अचानक होने वाले ज्वर की प्रथम दवा है। अभी थोड़ी देर पहले बच्चा/आदमी स्वस्थ था, बीमारी का कोई भी लक्षण का नामोनिशान नहीं था और अचानक हाथ पैर गर्म हो जाते है, शरीर का तापक्रम बढ जाता है, सरदर्द एवं बेचैनी लगने लगती है।रोगी कहता है कि मैं अब नहीं बचुंगा। अक्सर गाँवों में इसे ही लोग कहने लगते है कि 'नजर लग गईÓ इस हालत में एकोनाइट -30/200 का 2-2 बूँद दवा की दो खुराक 15-15 मिनट के अन्तर से दे दें। रोगी की हालत में तत्काल लाभ होगा। तथाकथित नजर का लगना उतर जायेगा।

ब्रायोनिया

रोग के शुरुआत में यदि एकोनाइट नहीं दिया जा सका तो ज्वर का लक्षण बदल जाता है। रोगी चुपचाप पड़ा रहता है, शरीर (हाथ पैरों ) मे दर्द रहता है, आँखें, कनपटी और सिर में काफी दर्द होता है। यह दर्द हिलने डुलने के कारण, यहाँ तक कि आँखें खोलने के कारण भी सिर का दर्द बढ जाता है। मुँह का स्वाद कड़वा रहता है। जीभ के उपर सफेद/पीला लेप जैसा चढ़ा रहता है। देर देर मे ज्यादा पानी पीता है (1-2 गिलास) पीता है। मुँह सुखा रहता है कब्ज रहता है। ब्रायोनिया - 30/200 का 2-2 बुंद दवा जीभ पर तीन तीन घंटे के अन्तराल पर दें। ज्वर का कारण अचानक ठंड लगना भी होता है।

युपेटोरियम पर्फोरेटम

कुछ ज्वर मे दर्द शरीर के हड्डीयों मे ज्यादा होता है। इसे बोलचाल की भाषा मे हड्डीतोड़ बुखार भी कहते है। हाथ पैंरों की हड्डियों में तेज दर्द इसका प्रधान लक्षण है। इसके साथ जोरों का सिर दर्द, जाड़ा लगना, कँपकँपी होना, यकृत की जगह पर दर्द, जीभ पीली मैल से ढँकी आदि इसके ज्वर के द्वितीयक लक्षण है।

रस टाक्स

वर्षा मे भींगने या ज्यादा स्नान करने या बरसात के मौसम मे होने वाले ज्वर की यह स्श्चद्गष्द्बद्घद्बष् क्रद्गद्वद्गस्र4 है। यदि ज्वर के साथ खाँसी और प्यास हो तो सीधे सीधे इसे आजमाएं। शरीर मे विशेषकर कमर मे दर्द रहता है। ब्रायोनिया के विपरीत इसका दर्द आराम करने से बढ़ता है। रोगी बिस्तर से उठकर टहलने के लिए मजबुर होता है या बिस्तर पर ही करवट बदलता रहता है।

जेल्सिमियम

सुस्ती इसका प्रधान लक्षण है। रोगी ज्वर की तीब्र अवस्था में भी चुपचाप सोया रहता है। प्यास प्राय: नहीं रहती है। तमतमाया हुआ लाल रंग का चेहरा , छलछलायी जल भरी आँखें, लगातार छींकें आना, नाक से लगातार पानी आना आदि इसके मुख्य लक्षण है। रात मे ज्वर बढ जाना, और सुबह में बिना पसीना आये ज्वर उतर जाना, काफी चिढचिढापन के साथ साथ सिर्फ सोये रहने की इच्छा रहना, शरीर मे कोई ताकत नहीं मिलना (कमजोरी) आदि इस दवा कि ओर इशारा करते है। इस दवा की 2-2 बुन्द तीन तीन घंटे के अन्तराल पर दें।
डॉ. ए. के. द्विवेदी
बीएचएमएस, एमडी (होम्यो) प्रोफेसर, एसकेआरपी गुजराती होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज, इंदौर
संचालक, एडवांस्ड होम्यो हेल्थ सेंटर एवंहोम्योपैथिक मेडिकल रिसर्च प्रा. लि., इंदौर

रेन जैकेट से बनें स्टाइलिश


बारिश में मस्ती करना चाहती हैं और स्टाइल भी दिखाना चाहती हैं, तो वॉटर प्रूफ जैकेट ट्राई करें। बेशक यह आपके लिए दोनों मामलों में बेहतरीन साबित होगी।
मॉनसून चल रहा है, तो इसका मतलब यह नहीं कि आप इंतजार करें कि कब बारिश बंद हो और आप बाहर निकलें। आप भी ले सकती हैं इस मौसम का भरपूर मजा, लेकिन उससे पहले खरीद लें वॉटरपूफ जैकेट। एक अलग तरह की जैकेट इस बारिश में आपकी शख्सियत को एकदम अलग अंदाज देगी।

इको रेन सेल जैकेट

ये जैकेट स्पोर्ट्स वुमन के लिए बेहतरीन हैं। खास स्टाइल पाने के लिए इनका इस्तेमाल कॉलेज गोइंग गर्ल्स भी खूब कर रही हैं। ये रिसाइकल पॉलिएस्टर से तैयार की जाती हैं और इसमें हुड व सिंगल इंटरनल सिक्युरिटी पॉकेट होता है। बाहरी खूबसूरती के लिए इसमें डिजाइन किए गए दो हैंड वॉर्मर बारिश में पॉकेट्स में हाथ डालकर घूमने की आपकी इच्छा को भी पूरा कर देंगे।

रेन शेडो जैकेट

यह लाइटवेट होती है और बॉडी पर फिट रहती है। इसमें आगे से जिप और आगे बने इसके दो पॉकेट्स में भी जिप लगी होती है। इसका रोल डाउन हुड का इस्तेमाल न केवल बारिश में, बल्कि तेज धूप में भी लोग खास स्टाइल पाने के लिए इस्तेमाल करते हैं। इसमें कुछ जैकेट्स के डिजाइंस लेयरिंग में भी लाए गए हैं। ये फेमिनन लुक पाने में आपकी खासी मदद करेंगी।

फेस वेंचर जैकेट

इनका हर डिजाइन लेयरिंग वाला होता है। ये बॉडी फिटेड हैं और इसके आगे के दो लंबे पॉकेट्स इसे ग्लैमरस लुक देते हैं। इसमें आप चाहें, तो फेस को ढककर रख सकती हैं। हैप लुक पाने में ये जैकेट्स आपकी खासी मदद करेंगी।

प्रीचिप जैकेट

हल्की बारिश के लिए ये जैकेट्स कम्फर्टेबल हैं। ये बेहद हल्की होती हैं और इसमें आगे से जिप लगी होती है। फ्रंट में बनी एक पॉकेट का साइज इतना बड़ा होता है कि इसमें पानी की एक बड़ी बोटल रखी जा सकती है।

रेन शील्ड जैकेट

इसे रेन सूट के नाम से भी जाना जाता है। यह हुड व बिना हुड दोनों में पसंद की जाती है। अगर बारिश न हो रही हो और होने की आशंका हो, तो भी इसे पहना जा सकता है। यह बॉडी टेम्परेचर को ठीक बनाए रखती है और आमतौर पर ब्राइट कलर्स में मिलती हैं।

डबल ब्रेस्ट जैकेट

प्रोफेशनल लोगों पर यह जैकेट बेहद जमती है। यह ऊपर से नीचे तक फुल चेन वाली होती है।

डिजाइंस ही डिजाइंस

भीड़ में अपनी छवि और पर्सनैलिटी को अलग दिखा पाना आसान काम नहीं है। लेकिन इस सीजन में आप ऐसा कर पाएंगी, सही जैकेट को चूज करके।

रेन फॉरेस्ट

जैकेट्स में कई डिजाइंस हॉट बने हुए हैं, लेकिन रेन फॉरेस्ट सबसे ज्यादा डिमांड में है। यह नायलोन से बनी हैं और ग्रीन कलर के कई शेड्स इसमें इस्तेमाल किए गए हैं।

फ्लावर्स

फ्लावर्स वाली जैकेट्स भी इन दिनों खूब छाई हुई हैं। ये ब्राइट कलर्स के कलर कॉम्बिनेशन में हैं।

स्ट्राइप्स

मल्टीकलर स्ट्राइप्स में आपको कई डिजाइंस मिल जाएंगे।
क्रोकोडाइल प्रिंट्स
क्रोकोडाइल प्रिंट्स में भी डिजाइंस कई तरह के पसंद किए जा रहे हैं। ये हल्के डिजाइन किए होते हैं। इन्हें प्रफेशनल लुक के लिए कैरी किया जा सकता है।

कलर्स

ये जैकेट्स ग्रीन, इलेक्ट्रिक ब्लू शेड्स, डीप पर्पल कलर, यलो, ऑरेंज में खूब पसंद की जा रही हैं। 

बारिश हो या गर्मी छतरी के बिना मजा नहीं आता


रिमझिम बरसती बूंदें हों या आग उगलता सूरज, छतरी दोनों ही मौसम में अपनी जरूरत का अहसास कराते हुए आपका बचाव करती है। फैशन का पर्याय बन चुकी रंगबिरंगी छतरियां आज से ही नहीं बल्कि सदियों से अलग-अलग रूप में अपने अस्तित्व का अहसास कराती रही हैं।
बारिश के मौसम में घर से बाहर निकलना हो तो हाथ छतरी की तलाश पहले करते हैं। अगर छतरी घर पर भूल गए और रास्ते में पानी बरस पड़ा तो मुंह से यही निकलता है 'काश, छतरी न भूले होते।Ó देवि अहिल्या विश्वविद्यालय की छात्रा अर्पिता सिंह कहती हैं 'गर्मी में छतरी धूप से बचाने के काम आती है। लेकिन बारिश में छतरी लगा कर चलने का मजा ही कुछ और होता है। पिछले साल बारिश के मौसम में मेरी छतरी गुम हो गई। मैंने दूसरी छतरी खरीदी क्योंकि इसके बिना बरसात और गर्मी में काम चलने वाला नहीं है।Ó
एक सरकारी कार्यालय में क्लर्क कांता दुबे कहती हैं मैंने तो ऑफिस में अपने दराज में एक छतरी रखी हुई है। बारिश में घर से निकलते समय तो छतरी ले सकते हैं लेकिन अगर भूल गए तो ऑफिस से लौटते समय मुश्किल हो जाती है। मेरा घर वैसे भी बस स्टैंड से दूर है। छतरी कब से अस्तित्व में आई यह कहना मुश्किल है। लेकिन प्राचीन इतिहास में राजा महाराजाओं के पीछे उनके अनुचरों के छतरी लेकर चलने का जिक्र मिलता है।
ऐतिहासिक तस्वीरों में भी महाराजाओं के सर पर छतरी लेकर चलते अनुचर नजर आते हैं। कहा जा सकता है कि किसी जमाने में छाता शाही सम्मान का भी प्रतीक होता था। अलग-अलग देशों में जरूरत के अनुसार, छतरियां अलग-अलग रूप धर कर लोगों के काम आती रहीं। भारत के साथ साथ मिस्र, यूनान तथा चीन की प्राचीन कलाकृतियों में छाते की छवि स्पष्ट तौर पर दिखाई देती है।
छतरी के महत्व को देखते हुए कुछ देशों ने एक दिन इसके नाम कर दिया है। इन देशों में 10 फरवरी को अम्ब्रेला डेज मनाया जाता है। छाते की एक दुकान के संचालक गिरधारीलाल गुप्ता कहते हैं 'पहले काले छाते आते थे जो बड़े होते थे और उन्हें फोल्ड नहीं किया जा सकता था। बुजुर्गों के लिए ये छाते छड़ी की तरह सहारा देने का काम भी करते थे। अब फोल्डिंग छाते आते हैं। इन्हें मोड़ कर आसानी से बैग में रखा जा सकता है।Ó
वह बताते हैं 'छातों की कीमत उनकी क्वालिटी के अनुरूप होती है। अब बारिश में दुपहिया वाहन चलाने वाले लोग बरसाती यानी रेन कोट लेना ज्यादा पसंद करते हैं। रेन कोट पहन कर दुपहिया वाहन चलाना आसान होता है जबकि छाते को संभालते हुए दुपहिया वाहन नहीं चलाया जा सकता।Ó अर्पिता कहती हैं कि 'तेज हवा में छतरी उलट भी जाती है।Ó वह कहती हैं 'फोल्डिंग छतरियां नाजुक होती हैं। तेज हवा में ये उलट जाती हैं।Ó
छतरी आम आदमी की जिंदगी का एक हिस्सा तो है ही, फिल्मों में भी इसने अपनी जगह बनाई है। फिल्म 'चालबाजÓ में श्रीदेवी और सनी देओल को पारदर्शी छतरी ले कर 'न जाने कहां से आई हैÓ गीत पर थिरकते देखा जा सकता है। वहीं 'कोई मिल गयाÓ में प्रीति जिंटा और रितिक रोशन छतरी लेकर 'इधर गयाÓ गीत पर बारिश में झूमते दिखाई देते हैं। अगर ग्वालियर के सिंधिया घराने की बात हो तो छतरी का मतलब बदल जाता है। सिंधिया राजमहल में एक हिस्से में समाधि स्थल है जहां छतरियों के नीचे सिंधिया राजवंश के दिवंगत सदस्यों की समाधियां हैं।

बरसात में डाइट प्लान


मॉनसून का सीजन भले ही रोमांटिक और खुशनुमा होता है, लेकिन यह अपने साथ कई बीमारियां भी लेकर आता है। इस मौसम में लोग सबसे ज्यादा बीमार पड़ते हैं। बरसात के मौसम में खानपान में थोड़ी सी भी लापरवाही सेहत का बैंड बजा सकती है। ऐसे में यदि थोड़ी सावधानी बरती जाए तो आप खुद को स्वस्थ भी रख सकते हैं और मानसून का पूरा मजा उठा सकते है। इस अनहाइजीन मौसम में फूड प्लान या डाइट चार्ट बनाना बेहद जरूरी है।

बरसात में खानपान से जुड़ी इन बातों का ध्यान रखें- 

  • इस मौसम में दाल, सब्जिय़ां व कम वसा युक्त आहार खाएं।
  • बारिश में शरीर में वात यानी वायु की वृद्धि होती है, इसलिए हल्के व शीघ्र पचने वाले वाले व्यंजनों को ही खाएं।
  • अगर आप खाने के शौकीन हैं तो घर पर ही साफ-सुथरे तरीके से बनी चीजों को खाएं।
  • बरसात के मौसम में वातावरण में काफी नमी रहती है। जिसके कारण प्यास कम लगती है। लेकिन फिर भी पानी जरूर पीयें।
  • बरसात में नींबू की शिकंजी पीयें।
  • फलों को साबुत खाने के बजाय सलाद के रूप में लें। क्योंकि इस मौसम में फलों में कीड़ा होने की संभावना काफी अधिक रहती है और अगर आप उन्हें सलाद के रूप में काटकर खाएंगे तो आप यह देख सकेंगे कि कहीं फल भीतर से खराब तो नहीं है।

कैसा हो ब्रेकफास्ट, लंच और डिनर

  • ब्रेकफास्ट में ब्लैक टी के साथ पोहा, उपमा, इडली, सूखे टोस्ट या परांठे ले सकते है।
  • लंच में तले-भुने खाने की बजाय दाल व सब्जी के साथ सलाद और रोटी लें।
  • डिनर में वेजीटेबल, चपाती और सब्जी लें।
  • इस मौसम में गर्मागर्म सूप काफी फायदेमंद रहता है।  
  • दूध में रोजाना रात को हल्दी मिलाकर पीने से पेट और त्वचा दोनों स्वस्थ रहेंगे।
  • तरबूज, मौसम्बी, खरबूज आदि मौसमी फलों से आपको जरूरी पोषक तत्व मिल सकते हैं।

इन चीजों का करें परहेज

  • बरसात में गर्मागर्म पकौड़े और समोसा खाने को मन जरूर ललचाता है। लेकिन बात अगर सेहत की हो तो इनसे दूर रहने में ही आपकी भलाई है। 
  • गरिष्ठ भोजन, उड़द, अरहर, चौला आदि दालें कम खाएं।
  • दही से बनी चीजों का सेवन भी इस मौसम में कम करें तो बेहतर। 
  • इस मौसम में फलों के जूस का सेवन सोच-समझकर करें। बारिश में फल पानी में भीगते रहते हैं इससे फलों में रस की तुलना में पानी ज्यादा भर जाता है।
  • बरसात में चारों ओर हरी-भरी नजर आने वाली सब्जियों में कीड़े होने की आशंका ज्यादा रहती है। ऐसे में पत्तेदार सब्जियों के सेवन से बचें।
  • मैदे की चीजें, आइसक्रीम, मिठाई, केला,  अंकुरित अनाज आदि कम खायें।
  • बारिश के मौसम में स्नैक्स व कूल ड्रिंस्क का सेवन भी सेहत को नुकसान पहुंचा सकता है।
  • इस मौसम में सड़कों में कीचड़ और गंदगी का अंबार रहता है। ऐसे में सड़क के किनारे मिलने वाले खाने-पीने चीजों से दूर रहें।

बरसात के मौसम में कहीं परेशान न करें बीमारियां


आयुर्वेद के मुताबिक मानसून में हमारी पाचन क्रिया कमजोर हो जाती है। इसका असर शरीर की पित्त और वात ऊर्जा पर पड़ता है। इससे आपकी पाचन क्रिया, प्रतिरक्षा प्रणाली और जीवन शक्तिभी कमजोर हो जाती है।
वात असंतुलन होने से शरीर में दर्द, सिरदर्द और गैस जैसी समस्यायें हो सकती हैं। पित्त दोष होने से फंगल इंफेक्शन, यूरीनेरी ट्रेक्ट इंफेक्शन, त्वचा और गले में संक्रमण की परेशानी हो सकती है, लेकिन घबराने की कोई बात नहीं। कुछ बातों का खयाल रखकर आप बारिश के मौसम का पूरा मजा ले सकते हैं।

अगर आपको डायबिटीज है...

अपने पैरों का रखें खयाल

अगर आपको डायबिटीज है तो आपको अपने पैरों का अतिरिक्त खयाल रखने की जरूरत होती है। डायबिटीज के मरीजों की रक्तवाहिनियां कमजोर हो जाती हैं। इसका असर रक्तप्रवाह कम हो जाता है। इससे पैरों पर बुरा असर पड़ता है।

नंगे पैर न घूमें

यूं तो नंगे पैर कभी नहीं घूमना चाहिये। लेकिन, बारिशों के दिनों में तो ऐसा बिलकुल ही नहीं करना चाहिये। बरसात के दिनों में कई कीड़े मकौड़े घूमते रहते हैं। वे आपके पैरों पर काट सकते हैं। घर के बाहर तो नंगे पैर बिलकुल ही कदम भी न रखें।

पैरों को रखें साफ

अपने पैरों को अच्छी तरह धोयें और सुखायें। जूते पहनने से पहले पैरों पर एंटी-फंगल पाउडर डालें। अगर आपको डायबिटीज है, तो कभी भी ऐसे जूते न पहना करें जो आपके पैरों में सही से फिट न आते हों।

मसाज है बेहतर

अपने पैरों की मसाज करते रहें। रात को सोने से पहले अपने पैरों की तेल से अच्छी तरह मालिश करें। इससे आपके पैरों की सेहत अच्छी रहती है।

अगर आपको अस्थमा है


आहार का रखें ध्यान

मानसून के दिनों में अस्थमा के मरीजों को अपने आहार का विशेष ध्यान रखना पड़ता है। रात के समय खासतौर पर दही, अचार और भारी भोजन के सेवन से बचें। इससे आपकी परेशानी बढ़ सकती है।

प्राणायाम करें

प्राणायाम आपके लिए बहुत फायदेमंद हो सकता है। प्राणायाम के जरिये आप अपनी सांसों की गति को नियंत्रित कर सकते हैं। इससे अस्थमा अटैक की आशंका कम होती है। इसके साथ ही आपको पैदल चलने जैसे हल्के व्यायाम भी करने चाहिये।

सफाई रखें

साफ-सफाई का विशेष रूप से ध्यान रखें। अलमारी और अन्य बंद स्थानों पर कवक जमा न होने दें। पान और नीम के पत्ते घर और अलमारी में रखें, इससे आपको सांस लेने में आसानी होगी।

अगर आपको लिवर की समस्या है

आहार हो सही

जिन लोगों को लिवर संबंधित कोई परेशानी है, बारिशें उनके लिए किसी मुसीबत से कम नहीं होती। बरसात में यूं ही हमारी पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है। ऐसे मौसम में आपको फल, खिचड़ी, ठंडे सूप और नारियल पानी आदि का सेवन अधिक करना चाहिये। ये आहार पचने में आसान होते हैं। और लिवर के मरीजों के लिए ये काफी फायदेमंद होते हैं।

शराब के सेवन से रहें दूर

शराब का सेवन आपके लिए अच्छा नहीं। मानसून के दिनों में खासकर आपको उच्च प्रोटीन, एल्कोहल और तला हुआ भोजन नहीं करना चाहिये। इनका सेवन आपकी सेहत पर विपरीत असर डालने का काम करता है।

अगर आपकी त्वचा है संवेदनशील


मूंग और चना, फायदा दे घना

मूंग की दाल और चने का पाउडर समान मात्रा में लें। इस पाउडर को पानी या दूध में मिला लें। इस मिश्रण से दिन में दो बार चेहरा धोयें। इससे आपके चेहरे पर जमा गंदगी तो साफ होगी ही साथ ही त्वचा भी सुरक्षित रहेगी।

पपीता, शहद और दूध

पपीते, शहद और दूध का मिश्रण तैयार करें। इसे अपने चेहरे पर लगायें, और 15 मिनट के लिए छोड़ दें। इसके बाद सामान्य पानी से चेहरा धो दें।

मसाज

सप्ताह में एक बार आयुर्वेदिक तेल से बॉडी मसाज करवायें। इससे त्वचा में रक्त संचार सुचारू होगा और साथ ही त्वचा के रोम छिद्र भी खुलेंगे।

बेसन से करें साफ

अपने चेहरे को बेसन, हल्दी और कच्चे दूध के मिश्रण से साफ करें। इसे अपने चेहरे पर लगायें और 15 मिनट के लिए छोड़ दें। इसके बाद इसे साफ पानी से धो लें। इससे आपका चेहरा निखर जाएगा।  

हृदय समस्या से निजात पाएं


खानपान में पौष्टिकता की कमी और अनियमित दिनचर्या के कारण दिल के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है, दिल के दौरे का शिकार उम्रदराज लोग ही नहीं युवा भी हो रहे हैं।
अनियमित दिनचर्या और खानपान में लापरवाही के कारण दिल के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। 'सर्कुलेशनÓ जर्नल में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक जो लोग अपने आहार में अत्यधिक वसा, नमक, अंडे और मांस खाते हैं, दूसरों के मुकाबले उनका दिल बहुत जल्दी बीमार हो जाता है और उन्हें दिल का दौरा पडऩे का जोखिम 35 प्रतिशत अधिक होता है। हृदय की समस्याओं के उपचार के लिए वैकल्पिक चिकित्सा का प्रयोग कर सकते हैं।

ओट्स खायें

जो लोग सुबह के नाश्ते में ओट्स का सेवन करते हैं, उनमें दिल का दौरा पडऩे का जोखिम के साथ दिल की अन्य बीमारियों के होने का खतरा कम होता है। ओट्स में घुलनशील रेशे होते हैं। ये घुलनशील रेशे लो-डेंसिटी लीपोप्रोटीन (एलडीएल) या बुरे कोलेस्ट्रॉल को कम करते हैं। इसके अलावा ओट्स रक्त नलिकाओं में जमी वसा को बाहर निकालने में मदद करते हैं।

पालक खायें

दिल की बीमारियों से बचने के लिए पालक का सेवन कीजिए। पालक में विटामिन ्य भरपूर मात्रा में पाया जाता है, जो दिल को बीमारियों से बचाता है। पालक में फाइबर होता है जो एलडीएल कोलेस्ट्रॉल के स्तर को घटाता है।

मेथी का सेवन करें

मेथी में विटामिन ्य पाया जाता है। इसके अलावा इसमें फाइबर भी होता है जो बुरे कोलेस्ट्रॉल का स्तर घटाता है। यह फोलेट का स्रोत होने के कारण होमोसिस्टीन नामक एमिनो एसिड को घटाने में मदद करता है जो एथिरोस्क्लोरोसिस (इस बीमारी में धमनी की दीवारें मोटी हो जाती है और रक्त के सचल प्रवाह में समस्या होती है) जैसे रोगों को होने से रोकता है।

टमाटर खायें

हृदय संबंधी समस्या में टमाटर का सेवन बहुत फायदेमंद होता है। टमाटर में लाइकोपीन, बीटा-कैरोटीन, फोलेट, पोटैशियम, विटामिन सी, फ्लेवनाइड और विटामिन ई होते हैं, जो एलडीएल कोलेस्ट्रॉल, होमोसिस्टीन का स्तर कम कर रक्त संचार को ठीक करने में मदद करते हैं।

वाइन का सेवन

दिल को स्वस्थ रखने और दिल को बीमारियों से बचाने के लिए वाइन का सेवन कीजिए। कई शोधों में यह बात सामने आ चुकी है कि वाइन का सेवन दिल की बीमारियों से बचाता है। लेकिन इसका अधिक सेवन करने से बचें।

शिमला मिर्च खायें

शिमला मिर्च कई रंग के होते हैं, ये खाने में रंग लाने के साथ-साथ हृदय को स्वस्थ रखने में भी मदद करते हैं। इसमें विटामिन बी1 ,बी2 और बी6, विटामिन सी, फोलेट और फाइबर अधिक मात्रा में पाया जाता है, जो बुरे कोलेस्ट्रॉल और होमोसिस्टीन को कम करने में मदद करते हैं।

गाजर है फायदेमंद

गाजर में कैरोटिनॉइड, विटामिन ए और सी, फाइबर प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इसमें कैरोटिनॉइड और विटामिन सी फ्री रैडिकल्स से रक्त धमनी को नुकसान होने से बचाते हैं। फाइबर कोलेस्ट्रॉल के सोखने की प्रक्रिया को मजबूत करके हृदय स्वास्थ्य को बेहतर करता है।

मछली का सेवन करें

मछली का सेवन करने से दिल मजबूत होता है और बीमारियों से बचाव होता है। मछलियों में ओमेगा-3 फैटी एसिड काफी मात्रा में पाए जाते हैं, जो हमारे गुड कोलेस्ट्रॉल के स्तर को बढ़ाकर दिल को स्वस्थ रखते हैं।

तनाव से बचें

तनाव दिल का सबसे बड़ा दुश्मन है, इसलिए दिल को बीमारियों से बचाने के लिए जरूरी है कि तनाव से दूर रहें। तनाव लेने से रक्त संचार प्रभावित होता है, दिल के दौरे के लिए तनाव भी जिम्मेदार है।

वजन रखें संतुलित

अधिक वजन रहने से हृदय की बीमारियों के होने का खतरा बढ़ जाता है, इसलिए वजन को नियंतत्रण में रखना बहुत जरूरी है। ऐसी डाइट लें, जिसमें वसा कम हो और फल-सब्जियों की मात्रा ज्यादा हो। इसके नियमित रूप से व्यायाम को अपनी दिनचर्या में शामिल करें।

सिर में रूसी की जटिल समस्या


सिर में रूसी का होना एक आम समस्या है, जिससे हममें से हर कोई परेशान रहता है। जब यह रूसी हद से ज्यादा बढ़ जाती है और हमारे कपड़ों कर गिरने लगती है, तब कई बार इस समस्या के कारण हमें दूसरों के सामने शर्मिंदा भी होना पड़ता है।
आजकल विज्ञापनों में दिखाए जाने वाले महँगे और रूसी हटाने का दावा करने वाले शैंपुओं से हमारे सिर की रूसी तो नहीं जाती परंतु हमारे सिर के बचे-कुचे बाल जरूर चले जाते हैं। यदि सिर में रूसी हो तो इससे बाल झडऩे लगते हैं व उनकी वृद्धि रुक जाती है।

क्या है रूसी का कारण

बालों में तेल नहीं लगाना, कई दिनों तक सिर नहीं धोना, सिर की त्वचा में संक्रमण होना आदि सिर में रूसी होने के सामान्य कारण हैं।

क्या है उपचार

रूसी को दूर करने के कई घरेलू उपचार हैं, जिनसे इस समस्या से आसानी से निजात पाई जा सकती है। रूसी से निजात पाने के लिए आप निम्न उपाय करें -
  • आँवला, रीठा, शिकाकाई तीनों की बराबर मात्रा लेकर इससे तीन गुना पानी में इन्हें धीमी आँच पर खूब उबालें। जब पानी पहले से आधा हो जाए तब इस पानी को छानकर इसे शैंपू की तरह इस्तेमाल करें।
  • केस्टर ऑइल और जैतून का तेल दोनों को बराबर मात्रा में लेकर उसे गुनगुना गर्म करके इस तेल से बालों की जड़ों में मसाज करें।
  • रात को मसाज करने के बाद सुबह एक चम्मच आँवला पावडर में एक अंडा मिलाकर इस मिश्रण को बालों की जड़ों में आधे घंटे लगाकर छोड़ दें। इसके बाद बाल धो लें।
  • अपने भोजन में सलाद, फल व हरी सब्जियों को अवश्य शामिल करें।
  •  मेथीदाना हमारे पेट व बाल दोनों के लिए लाभकारी होता है। रात को मेथीदाना पानी में भिगोकर सुबह उसे पीसकर उस पेस्ट को बालों की जड़ों में अच्छी तरह लगाकर कुछ देर बाद बाल धो लें। इससे बाल काले व चमकदार बनते हैं।
  • जैतून के तेल में शहद व दालचीनी पावडर मिलाकर इस मिश्रण को भी सिर की त्वचा पर लगाने से रूसी व बाल झडऩे की समस्या दूर होती है।

बुखार पर सीधा वार


रिमझिम फुहारों के साथ बरसात का मौसम अपने साथ कई तरह की बीमारियां भी लाता है, जिनमें बुखार बड़ा कॉमन है। डेंगू के मामले भी बढ़ रहे हैं। डेंगू, टायफाइड और मलेरिया के बारे में आइए विस्तार से जानें-

क्या है बुखार

जब हमारे शरीर पर कोई बैक्टीरिया या वायरस हमला करता है तो शरीर अपने आप ही उसे मारने की कोशिश करता है। इसी मकसद से शरीर जब अपना टेम्प्रेचर बढ़ाता है तो उसे बुखार कहा जाता है। अगर शरीर का तापमान सुबह के समय 99 डिग्री फेरेनहाइट से ज्यादा और शाम के वक्त 99.9 डिग्री फेरेनहाइट से ज्यादा है, तो बुखार माना जाता है। अब 98.4 नॉर्मल टेम्प्रेचर का कॉन्सेप्ट बदल चुका है। मलेरिया और डेंगू में बुखार 101 से लेकर 103 डिग्री फेरेनहाइट तक पहुंच जाता है, जबकि वायरल में बुखार की रेंज को बता पाना काफी मुश्किल होता है।

खुद क्या करें

बुखार अगर 102 डिग्री तक है कोई और खतरनाक लक्षण नहीं हैं तो मरीज की देखभाल घर पर ही कर सकते हैं। इसमें तीन चार दिन तक इंतजार कर सकते हैं। मरीज के शरीर पर सामान्य पानी की पट्टियां रखें। पट्टियां तब तक रखें, जब तक शरीर का तापमान कम न हो जाए। अगर इससे ज्यादा तापमान है तो फौरन डॉक्टर को दिखाएं।
मरीज को एसी में रख सकते हैं, तो बहुत अच्छा है, नहीं तो पंखे में रखें। कई लोग बुखार होने पर चादर ओढ़कर लेट जाते हैं और सोचते हैं कि पसीना आने से बुखार कम हो जाएगा, लेकिन इस तरह चादर ओढ़कर लेटना सही नहीं है।
मरीज को हर 6 घंटे में पैरासिटामॉल की एक गोली दे सकते हैं। यह मार्केट में क्रोसिन, कालपोल  आदि ब्रैंड नेम से मिलती है। दूसरी कोई गोली डॉक्टर से पूछे बिना न दें। बच्चों को हर चार घंटे में 10 मिली प्रति किलो वजन के अनुसार इसकी लिक्विड दवा दे सकते हैं। दो दिन तक बुखार ठीक न हो तो मरीज को डॉक्टर के पास जरूर ले जाएं।
साफ-सफाई का पूरा ख्याल रखें। मरीज को वायरल है, तो उससे थोड़ी दूरी बनाए रखें और उसके द्वारा इस्तेमाल की गई चीजें इस्तेमाल न करें। मरीज को पूरा आराम करने दें, खासकर तेज बुखार में। आराम भी बुखार में इलाज का काम करता है।
मरीज छींकने से पहले नाक और मुंह पर रुमाल रखें। इससे वायरल होने पर दूसरों में फैलेगा नहीं।

बुखार कब जानलेवा

सभी बुखार जानलेवा या बहुत खतरनाक नहीं होते, लेकिन अगर डेंगू में हैमरेजिक बुखार या डेंगू शॉक सिंड्रोम हो जाए, मलेरिया दिमाग को चढ़ जाए, टायफायड का सही इलाज न हो, प्रेग्नेंसी में वायरल हेपटाइटिस (पीलिया वाला बुखार) या मेंनिंजाइटिस हो जाए तो खतरनाक साबित हो सकते हैं।

बच्चों का रखें खास ख्याल

  • बच्चों का इम्यून सिस्टम कमजोर होता है इसलिए बीमारी उन्हें जल्दी जकड़ लेती है। ऐसे में उनकी बीमारी को नजरअंदाज न करें।
  • खुले में ज्यादा रहते हैं इसलिए इन्फेक्शन होने और मच्छरों से काटे जाने का खतरा उनमें ज्यादा होता है।
  • बच्चों को घर से बाहर पूरे कपड़े और जूते पहनाकर भेजें। मच्छरों के मौसम में बच्चों को निकर व टी-शर्ट न पहनाएं। रात में मच्छर भगाने की क्रीम लगाएं।
  • बच्चा बहुत ज्यादा रो रहा हो, लगातार सोए जा रहा हो, बेचैन हो, उसे तेज बुखार हो, शरीर पर रैशेज हों, उलटी हो या इनमें से कोई भी लक्षण हो तो फौरन डॉक्टर को दिखाएं।
  • आमतौर पर छोटे बच्चों को बुखार होने पर उनके हाथ-पांव तो ठंडे रहते हैं लेकिन माथा और पेट गर्म रहते हैं इसलिए उनके पेट को छूकर और रेक्टल टेम्प्रेचर लेकर उनका बुखार चेक किया जाता है। बगल से तापमान लेना सही तरीका नहीं है, खासकर बच्चों में। अगर बगल से तापमान लेना ही है तो जो रीडिंग आए, उसमें 1 डिग्री जोड़ दें। उसे ही सही रीडिंग माना जाएगा।
  • 10 साल तक के बच्चे को डेंगू हो तो उसे हॉस्पिटल में रखकर ही इलाज कराना चाहिए क्योंकि बच्चों में प्लेटलेट्स जल्दी गिरते हैं और उनमें डीहाइड्रेशन (पानी की कमी) भी जल्दी होता है।

होम्योपैथी और सौन्दर्य


स्वस्थ और चमकती हुई त्वचा अक्सर पूरे शरीर के स्वास्थ्य का दर्पण होती है। त्वचा की समस्याएं अक्सर आंतरिक स्वास्थ्य समस्याओं  के कारण होती  हैं जो किसी व्यक्ति के समग्र स्वास्थ्य को प्रतिबिंबित करती हैं। त्वचा की समस्याएं आमतौर पर एलर्जी के कारण या हार्मोन में असंतुलन हो जाने से या कुपोषण अथवा निर्जलीकरण के कारण होती हैं।
एलोपैथी चिकित्सा में, त्वचा की समस्याओं के इलाज के लिए, ज्यादातर सामयिक क्रीम का इस्तेमाल किया जाता है।  होम्योपैथी सामयिक क्रीम के इलाज को गलत नहीं समझता लेकिन क्रीम से त्वचा पर तत्काल असर हो सकता है, हमेशा के लिए समाधान नहीं हो सकता जबकि होम्योपैथी रोग के जड़ को हीं ख़त्म कर देता है जिससे उस रोग के दुबारा पनपने की संभावना बहुत कम रहती है। एलोपैथी चिकित्सा में रोग दब जाता है जो शरीर में अन्य विकार पैदा कर सकता है।
होम्योपैथी चिकित्सा में लक्षण को समझकर पूरे शरीर का इलाज किया जाता है जिससे की शरीर का पूरा तंत्र संतुलित रूप में काम करने लगे। होम्योपैथी मुँहासे, एक्जिमा, घावों, हाइव्स, सोरियासिस, चकत्ते, दाद इत्यादि जैसे त्वचा की बीमारियों को ठीक करने में बहुत हीं प्रभावकारी माना जाता है।  होम्योपैथिक उपचार से आप स्वस्थ और तेजपूर्ण त्वचा पा सकते हैं।

मुँहासे के लिए उपचार

कुछ ऐसे होम्योपैथिक उपचार हैं जो मुँहासे के इलाज में बहुत हीं उपयोगी होते हैं।  इनमें से प्रत्येक  मुँहासे के उपचार के लिए विभिन्न कारणों से उपयोगी माने जाते हैं।  इसलिए आपके मुँहासे के लिए सबसे अच्छा विकल्प कौन होगा इसके लिए बेहतर है  कि आप एक होम्योपैथिक चिकित्सक से परामर्श करें।

एक्जिमा के लिए उपचार

जीर्ण एवं एलर्जी के प्रति सवेदनशील त्वचा के उपचार के लिए कई होम्योपैथिक औषधियां प्रभावी एवं कारगर होती है जिन्हें लक्षणों के आधार पर एक्जिमा में आमतौर पर उपचार के रूप में  इस्तेमाल किया जाता है।

डॉ. ए. के. द्विवेदी
बीएचएमएस, एमडी (होम्यो)
प्रोफेसर, एसकेआरपी गुजराती होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज, इंदौर
संचालक, एडवांस्ड होम्यो हेल्थ सेंटर एवं होम्योपैथिक मेडिकल रिसर्च प्रा. लि., इंदौर

नीम की पत्तियों के इन गुणों से आप तो नहीं अनजान?


आ युर्वेद में नीम की पत्तियों का गुणगान है। नीम की पत्तियां न केवल त्वचा को बैक्टीरिया मुक्त रखती हैं बल्कि खून साफ करने में भी इनका इस्तेमाल होता है। नीम का इस्तेमाल करना सबसे आसान होता है। इसकी पत्तियां भी आसानी से आपको मिल जाएंगी। सुबह खाली मुंह नीम की कोमल पत्तियां खाने से खून भी साफ होता है।
नीम की पचास के करीब पत्तियों को दो लीटर पानी में डालकर खूब उबाल लें। उस उबले पानी को ठंडा करके एक बॉटल में रख लें। रोज नहाते समय उस पानी की थोड़ी मात्रा नहाने वाले पानी में मिलाएं। त्वचा में कोई संक्रमण नहीं होगा
नीम के इस पानी का उपयोग आप चेहरे को साफ करने के लिए भी कर सकती है रात में सोने से पहले एक कॉटन बॉल को नीम के पानी में डुबोएं उसके बाद उस पानी से चेहरे को साफ करें। ऐसा करने से चेहरा तो साफ होगा, साथ ही मुंहासे और ब्लैकहेड्स की समस्या से भी छुटकरा मिलेगा।
नीम की छाल और जड़ भी सेहत के लिहाज से बहुत प्रभावी होते है। इनका पाउडर बनाकर बालों में लगाने से रूसी और जूं की समस्या नहीं होती है, क्योंकि नीम अपने आप में एक बहुत ही अच्छा एंटीबैक्टेरियल होता है।